AI आधारित मेडिकल रिपोर्टिंग पर देशभर में बहस—कितनी भरोसेमंद हैं ये स्कैन?

भारत में AI आधारित मेडिकल रिपोर्टिंग पर तेजी से बहस छिड़ी हुई है। कई अस्पताल और लैब्स MRI, CT और X-ray स्कैन पढ़ने के लिए AI टूल्स का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन इनकी सटीकता, जवाबदेही और विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि AI अभी सिर्फ एक सहायक है, अंतिम रिपोर्ट तैयार करने वाला विशेषज्ञ नहीं। इस रिपोर्ट में हम बताते हैं कि विवाद क्यों बढ़ रहा है, मरीजों के लिए क्या जोखिम हैं और भारत की हेल्थकेयर प्रणाली के लिए इसका क्या अर्थ है।

MEDICAL NEWS

ASHISH PRADHAN

11/15/20251 min read

एक डॉक्टर MRI/CT स्कैन देखते हुए दिख रहा है और दूसरी ओर नीली रोशनी में AI सिस्टम का ग्राफ़िक
एक डॉक्टर MRI/CT स्कैन देखते हुए दिख रहा है और दूसरी ओर नीली रोशनी में AI सिस्टम का ग्राफ़िक
AI आधारित मेडिकल रिपोर्टिंग पर क्यों मचा है विवाद?

भारत में पिछले कुछ महीनों से एक महत्वपूर्ण प्रश्न लगातार सार्वजनिक चर्चा का विषय बना हुआ है—क्या अब देश में मेडिकल स्कैन पढ़ने के लिए औपचारिक रूप से आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग शुरू हो चुका है, और यदि हां, तो क्या इससे मिलने वाली रिपोर्टें पूरी तरह सटीक और भरोसेमंद हैं?


यह बहस तब तेज़ हुई जब कई अस्पतालों और निजी इमेजिंग सेंटर्स में AI-assisted radiology tools के उपयोग की खबरें सामने आईं। कौन इसका उपयोग कर रहा है, कब इसे लागू किया गया, कहाँ परीक्षण हो रहे हैं, क्यों इसकी ज़रूरत पड़ी और कैसे यह तकनीक डॉक्टरों के निर्णय को प्रभावित करती है—इन्हीं सभी प्रश्नों के उत्तर तलाशने में पूरी मेडिकल कम्युनिटी लगी हुई है।

क्या AI आधारित मेडिकल रिपोर्टिंग भारत में आधिकारिक तौर पर शुरू हो चुकी है?

AI-radiology tools की मौजूदगी नई नहीं है, लेकिन भारत में इसका “औपचारिक और पूर्ण-स्तरीय” उपयोग अभी भी बहस का विषय है। कुछ संस्थान इन्हें decision-support system की तरह बताते हैं, तो कुछ इसे “मेडिकल स्कैन पढ़ने वाला सहायक” मानते हैं।

डॉक्टरों के अनुसार, AI अभी एक ‘second reader’ की तरह है, न कि अंतिम रिपोर्ट तैयार करने वाला मुख्य विशेषज्ञ। इसके बावजूद कई लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या मरीजों को दी जाने वाली रिपोर्टें पूरी तरह भरोसेमंद हैं या नहीं।

AI रिपोर्टिंग के बारे में चिंता क्यों?

1. सटीकता (Accuracy) पर सवाल

विशेषज्ञों का कहना है कि AI मॉडल का प्रशिक्षण एक बड़े और विविध डेटा सेट पर निर्भर करता है। भारत में बीमारी के पैटर्न और जनसंख्या की विविधता को देखते हुए कई मॉडल पूरी तरह स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप नहीं होते, जिससे सटीकता पर सवाल उठते हैं

2. विश्वसनीयता (Reliability) से जुड़ी दिक्कतें

AI tools लगातार सीखते हैं, यानी उनकी performance समय-समय पर बदलती रहती है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना जटिल है कि हर स्कैन की रिपोर्ट हमेशा एक समान गुणवत्ता वाली हो।

3. जवाबदेही (Accountability) का अभाव

यदि AI रिपोर्ट किसी मामले में गलत हो जाए, गलत निदान हो, या किसी बीमारी को न पकड़ सके—तो जिम्मेदार कौन?
यही वह प्रश्न है जिस पर वर्तमान में सबसे अधिक बहस हो रही है।

AI और मेडिकल स्कैन: तकनीक वास्तव में कैसे काम करती है?

AI मॉडल आम तौर पर तीन प्रमुख चरणों में काम करते हैं:

  1. Image Recognition: MRI, CT, X-ray या Mammography जैसी इमेज में असामान्य पैटर्न पहचानते हैं।

  2. Pattern Classification: पहचानी गई असामान्यता को ज्ञात पैथोलॉजी जैसे ट्यूमर, फ्रैक्चर, इन्फेक्शन आदि से जोड़ते हैं।

  3. Risk Scoring: बीमारी की गंभीरता, संभावित निदान और आगे की जांच का सुझाव देते हैं।

AI पूरी प्रक्रिया तेज़ कर देता है, जिससे भीड़भाड़ वाले अस्पतालों में समय की बचत होती है।

क्या AI डॉक्टरों को Replace करेगा? विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

AI कंपनियों का दावा है कि तकनीक डॉक्टरों को सहायता देने के लिए है, उनकी जगह लेने के लिए नहीं।

रेडियोलॉजिस्ट डॉ. विनीत शर्मा कहते हैं:

“AI एक बेहद उपयोगी सहायक है, लेकिन अंतिम निर्णय हमेशा अनुभवी डॉक्टर को ही लेना चाहिए। भारतीय मरीजों की जटिलताओं को देखते हुए केवल AI पर भरोसा करना जोखिमपूर्ण हो सकता है।”

एक प्रमुख AI हेल्थ-टेक कंपनी के प्रतिनिधि का कहना है:

“AI की भूमिका है—स्कैन को तेज़ी से पढ़ना, छोटे संकेतों को पकड़ना और डॉक्टरों को सपोर्ट करना। इसे किसी भी हालत में ‘फाइनल रिपोर्ट जनरेटिंग सिस्टम’ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।”

मामले की पृष्ठभूमि: भारत में मेडिकल स्कैनिंग का बढ़ता बोझ

भारत में पिछले वर्षों में MRI, CT और X-ray स्कैन की मांग तेज़ी से बढ़ी है।

  • हर साल लगभग 5 करोड़ से अधिक इमेजिंग स्कैन किए जाते हैं।

  • ग्रामीण इलाकों में रेडियोलॉजिस्ट की भारी कमी है—कई जिलों में तो एक भी विशेषज्ञ मौजूद नहीं।

इन्हीं परिस्थितियों के कारण अस्पताल AI tools को “स्कैन पढ़ने की पहली परत” की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। लेकिन यहीं से विवाद शुरू हुआ—क्या इन्हें केवल preliminary reading के लिए उपयोग किया जा रहा है या final report भी इन्हीं से तैयार हो रही है?

क्या AI रिपोर्टिंग कहीं अनौपचारिक रूप से तो नहीं हो रही?

कई डॉक्टरों का कहना है कि कुछ निजी लैब्स workload कम करने के लिए AI रिपोर्ट्स को प्राथमिक आधार बना रही हैं। हालांकि नियमन (regulation) अभी स्पष्ट नहीं है।


भारत में मेडिकल AI के लिए कोई स्वतंत्र और सख्त National AI-Health Reporting Guideline अभी तक औपचारिक रूप से लागू नहीं है।

AI से मिलने वाली रिपोर्टों की विश्वसनीयता पर अध्ययन क्या कहते हैं?

विश्व स्तर पर हुए कई शोध बताते हैं कि:

  • AI certain diseases जैसे lung nodules, breast cancer detection, और fracture spotting में उच्च सटीकता दिखाता है।

  • लेकिन complex cases जैसे multiple infections, rare tumors, और overlapping structures में AI की performance अस्थिर रहती है।

भारतीय विशेषज्ञ कहते हैं कि—
“AI को मुख्य रिपोर्टर की बजाय, एक सहयोगी विश्लेषक (collaborative analyst) मानना चाहिए।”

मरीजों के लिए इससे जुड़े संभावित जोखिम
  1. Over-diagnosis: AI कई बार सामान्य variations को भी बीमारी समझ सकता है।

  2. Under-diagnosis: जटिल पैटर्न को न पहचान पाना भी एक समस्या है।

  3. गलत रिपोर्ट = गलत इलाज: गलत रिपोर्ट सीधे उपचार योजना को प्रभावित करती है, जिससे मरीज को भारी नुकसान हो सकता है।

  4. डेटा गोपनीयता का खतरा: अनेक hospitals क्लाउड-आधारित AI tools का उपयोग करते हैं—जिससे patient data security एक बड़ा मुद्दा है।

क्या AI के साथ मानव विशेषज्ञों की भूमिका और बढ़ेगी?

डॉक्टरों का मानना है कि AI का उपयोग सही ढंग से किया जाए, तो:

  • डॉक्टरों का रूटीन काम कम होगा

  • रिपोर्टिंग की गति बढ़ेगी

  • बीमारी को शुरुआती चरण में पकड़ने की संभावना बढ़ेगी

परंतु अंतिम निर्णय, clinical correlation और मरीज से बातचीत—ये सब केवल मानव विशेषज्ञ ही कर सकते हैं।

भारत में सरकारी स्तर पर क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
  • National Medical Commission (NMC) ने कहा है कि “AI मानव विशेषज्ञ को replace नहीं कर सकता।”

  • कुछ राज्यों में pilot projects चल रहे हैं, लेकिन इन्हें केवल assistive tech के रूप में ही अनुमोदित किया गया है।

  • नीति आयोग पहले ही कह चुका है कि AI-healthcare को strong regulation framework की आवश्यकता है।

AI का भविष्य: क्या यह भारत की हेल्थकेयर प्रणाली को बदल देगा?

यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में AI healthcare का बड़ा हिस्सा बनने वाला है।

  • रेडियोलॉजिस्ट की कमी

  • बढ़ती स्कैनिंग मांग

  • तेज़ निदान की आवश्यकता

इन सभी के कारण AI का उपयोग बढ़ेगा—but with human oversight.

विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले 5 वर्षों में भारत में AI-augmented reporting आम हो जाएगी, लेकिन AI-only reporting अभी दूर की संभावना है।

निष्कर्ष

भारत में मेडिकल स्कैन पढ़ने के लिए AI का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, परंतु यह कहना गलत होगा कि यह आधिकारिक रूप से पूर्ण रिपोर्टिंग उपकरण के रूप में लागू हो चुका है। वर्तमान में AI एक “सहायक प्रणाली” है, लेकिन इसके उपयोग को लेकर मौजूद अस्पष्टता मरीजों और डॉक्टरों दोनों के लिए चिंताएं पैदा कर रही हैं।

मरीजों के लिए विशेषज्ञों की सलाह है—
“AI की रिपोर्ट को अंतिम नहीं मानें। हमेशा trained radiologist की राय लें।”

भविष्य में AI-healthcare भारत की मेडिकल प्रणाली को तेज़, आधुनिक और अधिक सुलभ बना सकता है—लेकिन इसके लिए मजबूत regulation, उच्च गुणवत्ता वाले डेटा और सही clinical oversight अनिवार्य है।

References
  • Indian Radiological Association statements (2024)

  • NMC guideline discussions (2023–2024)

  • Global medical AI performance studies (2022–2024)

  • Healthcare technology research reports

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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