बीजापुर जिला अस्पताल में मोतियाबिंद सर्जरी के बाद नौ मरीजों की आंखों में संक्रमण: स्वास्थ्य व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल
छत्तीसगढ़ के बीजापुर में मोतियाबिंद सर्जरी के बाद 9 मरीज संक्रमण से पीड़ित पाए गए। स्वास्थ्य विभाग ने जांच शुरू की, ऑपरेशन यूनिट सील। यह घटना ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करती है।
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ASHISH PRADHAN
11/13/20251 min read


परिचय:
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से एक बेहद चिंताजनक मामला सामने आया है, जिसने न केवल स्थानीय स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल खड़े कर दिए हैं बल्कि सरकारी अस्पतालों में सर्जिकल सुरक्षा मानकों की स्थिति पर भी गंभीर बहस छेड़ दी है।
जिले के उसूर ब्लॉक के 14 मरीजों का 24 अक्टूबर 2025 को जिला अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन किया गया था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद जब ये सभी मरीज फॉलोअप जांच के लिए अस्पताल लौटे, तो उनमें से 9 मरीजों की आंखों में गंभीर संक्रमण (Eye Infection) पाया गया।
संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए डॉक्टरों ने तुरंत सभी संक्रमित मरीजों को रायपुर के डॉ. भीमराव अंबेडकर मेमोरियल अस्पताल (मेकाहारा) रेफर कर दिया, जहां उनका इलाज जारी है।
यह घटना न केवल चिकित्सा लापरवाही (Medical Negligence) का एक बड़ा उदाहरण मानी जा रही है, बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं में गुणवत्ता और सुरक्षा को लेकर गहरे सवाल खड़े कर रही है।
मोतियाबिंद ऑपरेशन: ग्रामीण भारत में एक सामान्य लेकिन संवेदनशील प्रक्रिया
मोतियाबिंद (Cataract) आंखों की एक ऐसी समस्या है जो विशेषकर बुजुर्गों में आम है। सरकारी योजनाओं के तहत ग्रामीण इलाकों में समय-समय पर “मोतियाबिंद शिविर” आयोजित किए जाते हैं ताकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग इस महंगी प्रक्रिया का मुफ्त लाभ उठा सकें।
बीजापुर जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में यह कार्यक्रम विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यहां के अधिकांश मरीज आर्थिक रूप से कमजोर हैं और शहरों के बड़े अस्पतालों तक पहुंचना उनके लिए मुश्किल है। लेकिन यही संवेदनशीलता इस घटना को और भी गंभीर बनाती है, क्योंकि जिस योजना का उद्देश्य राहत देना था, वही अब पीड़ा का कारण बन गई।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे ऑपरेशनों में स्टरलाइजेशन (Sterilization) और हाइजीन (Hygiene) के मानकों का पालन अत्यंत आवश्यक होता है। किसी भी एक छोटी सी चूक, जैसे उपकरणों का ठीक से साफ न होना या एंटीबायोटिक का सही समय पर न दिया जाना, संक्रमण का कारण बन सकती है — और यही इस मामले में हुआ प्रतीत होता है।
संक्रमण कैसे फैला? विशेषज्ञों की राय और शुरुआती जांच के संकेत
जिला अस्पताल प्रशासन ने प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। शुरुआती रिपोर्ट्स के अनुसार, संक्रमण का कारण सर्जिकल उपकरणों की ठीक से स्टरलाइजेशन न होना या ऑपरेशन के बाद मरीजों की उचित देखभाल का अभाव हो सकता है।
रायपुर मेकाहारा में भर्ती एक वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“मरीजों की आंखों में बैक्टीरियल संक्रमण के लक्षण हैं, जो आमतौर पर तब होता है जब ऑपरेशन के दौरान या उसके बाद की देखभाल में सफाई का स्तर पर्याप्त न हो। फिलहाल सभी संक्रमित मरीजों को एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट और विशेष निगरानी में रखा गया है।”
यह भी पता चला है कि ऑपरेशन के बाद मरीजों को दिए जाने वाले ड्रॉप्स और आई-किट्स में से कुछ की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
क्या प्रशासन ने सर्जरी में लापरवाही स्वीकार की? जांच समिति गठित
जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) ने मीडिया को बताया कि मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की गई है, जो यह पता लगाएगी कि ऑपरेशन के दौरान कौन-सी सावधानियाँ नहीं बरती गईं और संक्रमण कैसे फैला।
CMHO ने कहा,
“हम इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं। फिलहाल ऑपरेशन यूनिट को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है। समिति की रिपोर्ट आने के बाद जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की जाएगी।”
हालांकि मरीजों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि ऑपरेशन के तुरंत बाद दर्द और जलन की शिकायतें शुरू हो गई थीं, लेकिन स्टाफ ने शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ किया। यही वजह है कि जब तक संक्रमण गंभीर हुआ, तब तक स्थिति बिगड़ चुकी थी।
मेकाहारा अस्पताल में मरीजों का इलाज और वर्तमान स्थिति
रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में भर्ती मरीजों में से कुछ की हालत स्थिर बताई जा रही है, जबकि दो मरीजों की आंखों में संक्रमण गहराई तक फैल गया है। चिकित्सकों का कहना है कि ऐसे मामलों में यदि संक्रमण समय पर नियंत्रित न हो, तो स्थायी दृष्टि हानि (Permanent Vision Loss) का खतरा बना रहता है।
एक डॉक्टर ने बताया कि,
“संक्रमण को रोकने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिए जा रहे हैं। हम उम्मीद कर रहे हैं कि जल्द ही स्थिति में सुधार होगा, लेकिन जिन मरीजों में संक्रमण गहरा है, उनमें दृष्टि पर असर पड़ने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।”
ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यापक सवाल: क्या सिर्फ बीजापुर ही नहीं, पूरा सिस्टम बीमार है?
यह घटना सिर्फ एक जिले की समस्या नहीं है। यह पूरे ग्रामीण स्वास्थ्य तंत्र की जटिलता और उपेक्षा को उजागर करती है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रामीण अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ की कमी, पुराने उपकरणों का उपयोग और साफ-सफाई की अपर्याप्त व्यवस्था ऐसी घटनाओं की जड़ में हैं।
देशभर में हर साल लाखों मोतियाबिंद ऑपरेशन होते हैं, लेकिन इनमें संक्रमण के मामले अक्सर रिपोर्ट नहीं होते। कई बार मरीज अनपढ़ या ग्रामीण इलाकों से होते हैं, जिससे शिकायतें दर्ज ही नहीं होतीं।
निष्कर्ष: जवाबदेही और सुधार की दिशा में अगला कदम क्या होना चाहिए?
बीजापुर की यह घटना स्पष्ट करती है कि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर या फंडिंग बढ़ाने से नहीं होगा, बल्कि गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control), स्टाफ प्रशिक्षण (Training) और निगरानी प्रणाली (Monitoring Mechanism) को मजबूत बनाना जरूरी है।
यदि इस तरह की घटनाओं में जिम्मेदार लोगों को सख्त दंड नहीं मिलता, तो यह नजीर बनेगी कि सरकारी लापरवाही का बोझ हमेशा गरीब मरीजों को ही उठाना पड़ता है।
सरकार ने मामले की जांच का आदेश दे दिया है, लेकिन असली सुधार तभी होगा जब स्वास्थ्य विभाग जमीनी स्तर पर पारदर्शिता, जवाबदेही और उच्च चिकित्सा मानकों को प्राथमिकता दे।
स्रोत:
स्थानीय स्वास्थ्य विभाग रिपोर्ट, मेकाहारा अस्पताल रायपुर,
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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