CGMSC ने घटिया गुणवत्ता वाली तीन दवाओं पर लगाई तीन साल की रोक: ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ के तहत बड़ा कदम

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) ने घटिया गुणवत्ता वाली तीन दवाओं पर तीन साल की रोक लगाकर एक सख्त संदेश दिया है कि राज्य सरकार अब किसी भी फार्मा कंपनी को जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं करने देगी। यह निर्णय ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ के तहत लिया गया है, जो पारदर्शी और जवाबदेह स्वास्थ्य व्यवस्था की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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ASHISH PRADHAN

11/13/20251 min read

CGMSC अधिकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘Zero Tolerance Policy बोर्ड के सामने तीन दवाओं पर तीन साल की रोक
CGMSC अधिकारी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ‘Zero Tolerance Policy बोर्ड के सामने तीन दवाओं पर तीन साल की रोक
परिचय: कार्रवाई का उद्देश्य और पृष्ठभूमि

छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) ने स्वास्थ्य सुरक्षा से किसी भी प्रकार का समझौता न करने की दिशा में एक कड़ा कदम उठाते हुए तीन दवाओं को घटिया गुणवत्ता (Not of Standard Quality - NSQ) पाए जाने पर आगामी तीन वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया है।

यह कार्रवाई CGMSC की ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ के तहत की गई है, जिसके अंतर्गत किसी भी आपूर्तिकर्ता को तब तक किसी नए टेंडर में भाग लेने की अनुमति नहीं होगी, जब तक ब्लैकलिस्टिंग की अवधि समाप्त नहीं हो जाती। यह फैसला न केवल दवा गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि राज्य सरकार जनता के स्वास्थ्य के प्रति किसी भी प्रकार की लापरवाही को स्वीकार नहीं करेगी।

कौन सी दवाएं और क्यों पड़ी कार्रवाई की जद में?

मेसर्स एजी पैरेंटेरल्स, विलेज गुग्गरवाला और बद्दी (हिमाचल प्रदेश) द्वारा आपूर्ति की गई कैल्शियम (एलिमेंटल) विद विटामिन D3 टैबलेट्स, ऑर्निडाजोल टैबलेट्स शामिल हैं. ये सभी NABL मान्यता प्राप्त एवं सरकारी परीक्षण प्रयोगशालाओं में ‘अमानक (Not of Standard Quality – NSQ)’ पाई गई.

इसके अलावा मेसर्स डिवाइन लेबोरेट्रीज प्रा. लि., वडोदरा (गुजरात) द्वारा आपूर्ति की गई हेपारिन सोडियम 1000 IU/ml इंजेक्शन IP भी NABL मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं एवं सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेट्री (CDL), कोलकाता में परीक्षण के दौरान अमानक पाए गए. ऐसे में इन तीनों उत्पादों को निविदा शर्तों के अनुरूप तत्काल प्रभाव से तीन सालों की अवधि तक ब्लैकलिस्ट किया गया है l

CGMSC द्वारा जारी नोटिस के अनुसार, जिन तीन दवाओं को ब्लैकलिस्ट किया गया है, वे राज्य के विभिन्न सरकारी अस्पतालों में सप्लाई के लिए चयनित थीं। इन दवाओं के नमूनों को रूटीन गुणवत्ता परीक्षण के दौरान पाया गया कि वे भारतीय औषधि मानक (IP Standards) के अनुरूप नहीं हैं। रिपोर्ट में इन दवाओं में सक्रिय घटक (Active Pharmaceutical Ingredient) की मात्रा निर्धारित सीमा से कम पाई गई, जिससे उनकी प्रभावशीलता संदिग्ध हो गई।

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार,

“हमारा लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाली हर दवा सुरक्षित, प्रभावी और मानक गुणवत्ता की हो। किसी भी प्रकार की कमी हमारे मरीजों के जीवन के साथ समझौता है, जिसे हम कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे।”

यह कदम यह स्पष्ट करता है कि CGMSC अब किसी भी ऐसी कंपनी के खिलाफ कठोर रुख अपनाने से पीछे नहीं हटेगा, जो राज्य के लोगों की सेहत से खिलवाड़ करे।

‘जीरो टॉलरेंस नीति’ क्या है और इसका प्रभाव क्या होगा?

‘जीरो टॉलरेंस नीति’ CGMSC की वह आंतरिक नीति है, जिसके तहत दवा आपूर्ति में गुणवत्ता संबंधी त्रुटियों के लिए शून्य सहिष्णुता अपनाई जाती है। यह नीति केंद्र सरकार के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट और WHO की क्वालिटी गाइडलाइंस के अनुरूप है। इस नीति का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दवा निर्माण कंपनियां गुणवत्ता मानकों का सख्ती से पालन करें।

इस नीति के तहत ब्लैकलिस्ट किए गए आपूर्तिकर्ता तीन वर्षों तक किसी भी प्रकार की सरकारी निविदा (tender) प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकेंगे। इसके अतिरिक्त, उनकी पिछली आपूर्ति की जांच भी की जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पहले दी गई दवाओं से मरीजों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड़ा।

गुणवत्ता नियंत्रण में विफलता क्यों होती है?

भारत जैसे विशाल दवा बाजार वाले देश में गुणवत्ता नियंत्रण एक जटिल प्रक्रिया है। दवा निर्माण से लेकर वितरण तक की पूरी सप्लाई चेन में किसी भी स्तर पर लापरवाही या अनुचित भंडारण के कारण दवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार, कम लागत में उत्पादन का दबाव, अपर्याप्त परीक्षण सुविधाएं और समय पर निरीक्षण की कमी ऐसी समस्याओं को जन्म देती हैं।

“अक्सर कंपनियां लागत घटाने के लिए सक्रिय तत्वों की मात्रा में मामूली कटौती कर देती हैं। यह भले ही आर्थिक रूप से लाभकारी लगे, लेकिन चिकित्सा दृष्टि से यह घातक है। ऐसी दवाएं रोगों को ठीक करने के बजाय मरीजों की हालत और बिगाड़ सकती हैं।”

स्वास्थ्य प्रणाली में बढ़ती पारदर्शिता और जवाबदेही

CGMSC की यह कार्रवाई केवल एक दंडात्मक कदम नहीं है, बल्कि यह राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाने का प्रतीक है। अब सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि सभी आपूर्तिकर्ता अपने उत्पादन और गुणवत्ता रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में साझा करें। इसके अलावा, हर बैच की दवा को वितरित करने से पहले थर्ड-पार्टी लैब से प्रमाणन कराना अनिवार्य कर दिया गया है।

राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,

“हम दवा खरीद प्रणाली को पूरी तरह डिजिटल बना रहे हैं ताकि हर आपूर्ति, निरीक्षण और रिपोर्ट का रिकॉर्ड ऑनलाइन ट्रेस किया जा सके। इससे भविष्य में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पर तुरंत कार्रवाई संभव होगी।”

रोगियों पर संभावित असर और प्रशासनिक सावधानियां

हालांकि ब्लैकलिस्ट की गई दवाओं को अब बाजार या अस्पतालों से हटा लिया गया है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि इन दवाओं का कोई दुष्प्रभाव मरीजों पर न पड़े, राज्यभर के जिला अस्पतालों में हेल्थ सर्विलांस टीमों को अलर्ट पर रखा गया है। मरीजों को सलाह दी जा रही है कि वे किसी भी संदिग्ध दवा या उसके अप्रभावी असर की सूचना तुरंत अपने चिकित्सक या स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी को दें।

भविष्य के लिए सबक: गुणवत्ता से समझौता नहीं

CGMSC की यह कार्रवाई पूरे देश के लिए एक उदाहरण है कि सरकारी स्तर पर यदि इच्छाशक्ति हो तो दवा क्षेत्र में पारदर्शिता और सख्ती संभव है। यह कदम अन्य राज्यों को भी अपने ड्रग कंट्रोल मैकेनिज्म को मजबूत करने के लिए प्रेरित करेगा।

फार्मा नीति विशेषज्ञ का कहना है कि,

“यह केवल तीन दवाओं की बात नहीं है, बल्कि यह एक संकेत है कि आने वाले समय में जो भी कंपनी गुणवत्ता में लापरवाही करेगी, उसके लिए बाजार में कोई जगह नहीं बचेगी। यह कार्रवाई दीर्घकालिक रूप से मरीजों की सुरक्षा और भारतीय दवा उद्योग की साख दोनों के लिए आवश्यक है।”

निष्कर्ष: जनस्वास्थ्य के प्रति सख्त प्रतिबद्धता की मिसाल

CGMSC द्वारा उठाया गया यह कदम भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में जिम्मेदारी और पारदर्शिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। जब सरकारें ‘जीरो टॉलरेंस नीति’ जैसे कठोर कदम उठाती हैं, तब यह संदेश दूर तक जाता है कि स्वास्थ्य से जुड़ा कोई भी समझौता अब अस्वीकार्य है।

यह कार्रवाई न केवल राज्य के भीतर दवा आपूर्ति की गुणवत्ता को नियंत्रित करेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में कोई भी कंपनी लाभ के लालच में जनता की सेहत से खिलवाड़ करने की हिम्मत न करे।

स्रोत:
  • छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) आधिकारिक नोटिस, नवंबर 2025

  • राज्य औषधि नियंत्रण विभाग रिपोर्ट

  • विशेषज्ञ टिप्पणियां: डॉ. आर. पी. ठाकुर (फार्मास्युटिकल एनालिस्ट), डॉ. मीना पटेल (पब्लिक हेल्थ पॉलिसी विशेषज्ञ)

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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