हंटिंग्टन रोग में क्रांतिकारी खोज: जीन-थेरैपी AMT-130 ने बीमारी की रफ्तार 75% तक धीमी की — विशेषज्ञ बोले ‘नए युग की शुरुआत’
ब्रिटेन और अमेरिका के शोधकर्ताओं ने पहली बार साबित किया है कि जीन-थेरैपी AMT-130 हंटिंग्टन रोग की प्रगति को लगभग 75% तक धीमा कर सकती है। यूनिक्योर के अध्ययन में मिले परिणामों को विशेषज्ञ न्यूरोलॉजी में “नए युग की शुरुआत” बता रहे हैं। यह रिपोर्ट उन परिवारों के लिए बड़ी उम्मीद है जो पीढ़ियों से इस आनुवंशिक बीमारी का बोझ ढो रहे हैं।
PHARMA NEWS
Ashish Pradhan
11/22/20251 min read


ब्रिटेन और अमेरिका में किए गए शोध में एक बेहद आमंत्रणभरा कदम उठाया गया है: हंटिंग्टन रोग (Huntington’s Disease) के मरीजों के लिए अब पहली बार ऐसा जीन-थेरैपी ट्रीटमेंट सामने आया है, जिसने रोग की आगे बढ़ने की दर को लगभग 75% तक धीमा कर दिया है। यह खुलासा यूनिक्योर (uniQure) नामक बायोटेक कंपनी की अध्ययन रिपोर्ट में हुआ है, और विशेषज्ञ इसे “नए युग की शुरुआत” के रूप में देख रहे हैं।
यह बात सिर्फ उन मरीजों के लिए राहत की खबर नहीं है जो इससे पीड़ित हैं, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी एक बड़ी उम्मीद है — क्योंकि यह बीमारी पीढ़ियों में परिवार को प्रभावित करती है।
हंटिंग्टन रोग क्या है?
हंटिंग्टन रोग एक आनुवंशिक (जेनेटिक) ब्रेन डिसऑर्डर है, जिसमें एक दोषपूर्ण जीन (mutant huntingtin gene) की वजह से दिमाग की कुछ कोशिकाएँ धीरे-धीरे मरती जाती हैं।
इस बीमारी के लक्षण अक्सर मिड-एडल्ट उम्र (30–50 साल) में दिखने लगते हैं।
लक्षणों में शामिल हैं झटक वाले आंदोलन (jerky movements), याददाश्त में कमी, मूड स्विंग्स (जज़्बाती बदलाव), डिप्रेशन और धीरे-धीरे स्वायत्त जीवन क्षमता का खो जाना।
आज तक हंटिंग्टन रोग का कोई इलाज (क्योर) उपलब्ध नहीं था; दवाएँ केवल लक्षणों को नियंत्रित करने तक सीमित थीं।
AMT-130: जीन-थेरैपी कैसे काम करती है?
● जीन थेरेपी का तरीका
AMT-130 एक जीन-थेरैपी है, जो दिमाग में एवर-निर्माण असाधारण तरीके से पहुंचाई जाती है।
इसमें एक वायरस (viral vector) का इस्तेमाल किया गया है, जो हानिरहित है, और इसे MRI-मार्गदर्शित न्यूरोसर्जरी (मस्तिष्क ऑपरेशन) के माध्यम से दिमाग के खास हिस्सों (जैसे स्ट्रायटम) में इंजेक्ट किया जाता है।
वह वायरस माइक्रोआरएनए (microRNA) जीन पहुंचाता है, जो उस दोषयुक्त huntingtin जीन के संदेश (mRNA) को “चुप” कर देता है, जिससे विषैला प्रोटीन बनने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
● डोज और सुरक्षा
अध्ययन में दो डोज दी गई थीं: हाई डोज और लो डोज।
हाई डोज प्राप्त करने वाले मरीजों ने 36 महीनों (3 साल) तक ट्रैक किए गए, और उनकी प्रगति का तुलना “कंट्रोल ग्रुप” (बाहरी डेटा सेट से मिलाए गए) से की गई।
थेरैपी सामान्यतः सहन-योग्य (tolerable) पाई गई। साइड इफेक्ट्स ज्यादातर ऑपरेशन प्रक्रिया से संबंधित थे और समय के साथ ठीक हो गए।
अध्ययन का मुख्य नतीजा: 75% धीमी प्रगति
हाई-डोज समूह में “कंपोजिट यूनिफाइड हंटिंग्टन डिज़ीज़ रेटिंग स्केल (cUHDRS)” पर मापी गई प्रगति को अनुमानित किया गया कि 75% धीमी हो गई है, जब तुलना बाहरी कंट्रोल ग्रुप से की गई।
इसके अलावा, “टोटल फंक्शनल कैपेसिटी (TFC)” नामक मापदंड में भी 60% तक गिरावट में कमी देखी गई, जो बताता है कि दिन-प्रतिदिन की क्रियाशीलता (functional ability) धीमी ग़ति से बिगड़ी।
न्यूरोडीजेनेरेशन का एक बायोमार्कर — “न्यूरोफिलामेंट लाइट (NfL)” — भी समय के साथ कम हुआ, यह संकेत देता है कि दिमागी कोशिकाओं की मरना धीमा हुआ।
ये परिणाम बहुत ही मायने रखते हैं क्योंकि यह पहली बार है जब हंटिंग्टन रोग जैसी खतरनाक, प्रगतिशील बीमारी में “यह स्पष्ट रूप से देखा गया है कि रोग की गति को रोका जा सकता है”।
विशेषज्ञों की राय और प्रतिक्रिया
प्रोफेसर सारा टैब्रिज़ी (Sarah Tabrizi), UCL (University College London) की न्यूरोलॉजी विशेषज्ञ और अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता, कहती हैं कि यह “सबसे मजबूत प्रमाण” है जो अब तक मिला है। वह इसे उन परिवारों के लिए “बड़ी उम्मीद” कहती हैं, जिन्हें हंटिंग्टन रोग पीढ़ियों से परेशान करता रहा है।
प्रोफेसर एड वाइल्ड (Ed Wild), UCLH के न्यूरोलॉजी विभाग से, कहते हैं कि “यह एक युग का उदय है” — यानि अब हम सिर्फ लक्षणों को नियंत्रित करने की बात नहीं कर रहे, बल्कि बीमारी की मूल प्रकृति पर हमला कर सकते हैं।
यूनीक्योर की ओर से यह बताया गया है कि यह प्रतिक्रिया “डोज-डिपेंडेंट” है — यानी उच्च खुराक वालों में यह गहरा असर दिखा।
भावी कदम और चुनौतियाँ
यह जीत पूरी तरह सरल नहीं है — आगे कई चुनौतियाँ हैं:
स्वीकृति और नियामक प्रक्रिया
यूनिक्योर ने योजना बनाई है कि वह अमेरिकी एफडीए (FDA) को अपनी जानकारी प्रस्तुत करे।
यह थेरैपी “Breakthrough Therapy” और “Regenerative Medicine Advanced Therapy (RMAT)” के रूप में पहले ही पहचानी गई है, जिससे समीक्षा प्रक्रिया तेज हो सकती है।
फिर भी, यह ठोस अनुमति (“मार्केटिंग लाइसेंस”) अभी बाकी है।
माहिति और सुरक्षा की पुष्टि
यह अध्ययन छोटे समूह (29 मरीज) पर हुआ था, और यह प्रारंभिक (Phase I/II) स्तर का है।
दीर्घकालिक सुरक्षा और प्रभाव (long-term efficacy) पर अभी और अध्ययन करने की ज़रूरत है — यह देखना होगा कि 5-10 साल बाद भी यह असर बना रहता है या नहीं।
सर्जरी का जोखिम और महंगा होना एक बड़ा मुद्दा है। न्यूरोसर्जरी (12-20 घंटे) और एडमिनिस्ट्रेशन की जटिलता इलाज तक पहुंच को चुनौती दे सकती है।
लागत और पहुंच
इस तरह की थेरेपी मस्तिष्क ऑपरेशन और विशेष देखभाल की मांग करती है, जिससे इसकी कीमत बहुत ऊँची हो सकती है।
देश-स्तरीय स्वास्थ्य प्रणालियों (जैसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, बीमा) में इसे शामिल करना एक बड़ी चुनौती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ जीन-थेरैपी अभी नए हैं।
रुग्णों और परिवारों के लिए मायने
जिन परिवारों में हंटिंग्टन का इतिहास है, उन्हें यह न्यूज़ बहुत बड़ी राहत दे रही है। कई लोग यह सोचते थे कि दोषयुक्त जीन मिलने के बाद कोई उम्मीद नहीं बची — लेकिन अब “रोग की गति धीमी करना” एक वास्तविक संभावना बन गया है।
उदाहरण के लिए, जैक मे-डेविस (Jack May-Davis) नाम के एक 30 वर्षीय रोगवाहक ने कहा कि यह खबर उनके लिए भावुक पल लेकर आई है — क्योंकि पहले भविष्य की अनिश्चितता बहुत भारी थी, अब थोड़ी रौशनी दिखाई देने लगी है।
अगर यह थेरेपी मंजूर हो जाती है, तो ऐसे मरीजों के लिए यह “स्वतंत्र जीवन” के वर्ष बढ़ा सकता है — जैसे कि काम करना, रोज़मर्रा की गतिविधियाँ करना, और परिवार के साथ बिताने का समय बढ़ाना।
वैश्विक और भारत-विशिष्ट महत्व
वैश्विक स्तर पर, यह खोज जीन-थेरैपी और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों (जैसे पर्किंसंस, कुछ प्रकार की डिमेंशिया) में नए रास्ते खोल सकती है। क्योंकि अगर एक “टॉक्सिक प्रोटीन” को लक्ष्य करके नियंत्रित किया जा सकता है, तो वैज्ञानिक अन्य बीमारियों में भी इसी तरह योजना बना सकते हैं।
भारत के लिए, यह बहुत बड़ी सीख हो सकती है: आनुवांशिक रोगों की पहचान और शुरुआती हस्तक्षेप (intervention) ज़्यादा लाभ पहुंचा सकते हैं।
जीन-थेरैपी को अपनाने की दिशा में भारत में भी नीति तैयार की जा सकती है।
अस्पतालों और शोध संस्थानों को जीन थेरेपी और न्यूरोलॉजी में विशेषज्ञता बढ़ानी होगी।
इसके साथ ही, स्वास्थ्य बीमा नीतियों में जीन-थेरैपी के खर्च को शामिल करने पर भी चर्चा हो सकती है।
उम्मीद और सावधानियाँ: संतुलन जरूरी
यह उपलब्धि निश्चित रूप से उत्साहवर्धक है, लेकिन यह पूरी तरह “कुशलता से लागू इलाज” का मतलब नहीं है — अभी इसे और पुष्टि, विस्तार और निगरानी की आवश्यकता है।
विशेषज्ञ इसे “मायोसोपिशन” (मध्यम उत्साह + यथार्थवाद) के साथ देख रहे हैं: यह शुरुआत तो है, लेकिन यह एक अंतिम इलाज नहीं है (कम से कम अभी तक)।
यह सुनिश्चित करना होगा कि इस थेरेपी के फायदे “लंबे समय तक” बने रहें, और किसी तरह के नए खतरे न उभरें।
साथ ही, समाज में यह सवाल उठता है कि बहुत महंगी जीन-थेरैपी को कैसे निष्पक्षता के साथ उपलब्ध कराया जाए, ताकि सिर्फ अमीर और विकसित क्षेत्र ही इसका लाभ न उठा सकें।
निष्कर्ष
AMT-130 जीन-थेरैपी हंटिंग्टन रोग के इतिहास में पहली बार “मात्र लक्षणों को नियंत्रित करने” की बजाय बीमारी की गति को धीमा करने में कामयाब दिख रही है।
अध्ययन में 75% की धीमी प्रगति और 60% रूटीन क्षमता का बेहतर संरक्षण जैसे नतीजे मिले हैं, जो रोगियों और उनके परिवारों को नई उम्मीद देते हैं।
हालांकि चुनौतियाँ बहुत हैं — जैसे सुरक्षा, महंगाई, और अनुमोदन — लेकिन यह कदम निश्चित ही एक नए युग की शुरुआत का संकेत है।
भविष्य में अगर इस तरह की थेरेपी व्यापक रूप से लागू हो सके, तो हंटिंग्टन रोग से पीड़ित लोगों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव आ सकता है — और शायद पूरी तरह की “रोकथाम-केंद्रित” चिकित्सा का युग शुरू हो।
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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