हैदराबाद पुलिस ने 250 मिलियन डॉलर के साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का भंडाफोड़ किया; दिग्गज फार्मा कंपनी की अगली ओबेसिटी दवा को निशाना बनाया जा रहा था

हैदराबाद पुलिस ने 250 मिलियन डॉलर के साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का पर्दाफाश किया। गिरोह एक वैश्विक फार्मा कंपनी की ओबेसिटी-ड्रग और क्लिनिकल डेटा को ब्लैकमेल कर करोड़ों की उगाही कर रहा था।

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ASHISH PRADHAN

11/20/20251 min read

हैदराबाद पुलिस द्वारा 250 मिलियन डॉलर के साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का भंडाफोड़
हैदराबाद पुलिस द्वारा 250 मिलियन डॉलर के साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का भंडाफोड़
हैदराबाद पुलिस ने 250 मिलियन डॉलर के साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का भंडाफोड़ किया; डायबिटीज-ओबेसिटी दवा बनाने वाली प्रतिष्ठित कंपनी को बनाया जा रहा था निशाना
Introduction

हैदराबाद पुलिस ने एक ऐसे अत्याधुनिक साइबर-इंटिमिडेशन रैकेट का पर्दाफाश किया है, जिसकी कुल अनुमानित आर्थिक पहुँच लगभग 250 मिलियन डॉलर तक बताई जा रही है और जिसका मुख्य निशाना वह फार्मा कंपनी थी, जो हाल के वर्षों में diabetes treatment, obesity drug development और नवाचार आधारित weight loss injection के क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ पहचान बना चुकी है।

यह कार्रवाई बुधवार देर रात साइबर क्राइम विंग द्वारा की गई, जहाँ कई आरोपियों को हिरासत में लिया गया, जिन पर आरोप है कि वे कंपनी के अधिकारियों को डिजिटल धमकियों, डेटा-लीकेज की धमकियों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैले ब्लैकमेल नेटवर्क के सहारे करोड़ों की उगाही करने की कोशिश कर रहे थे।

यह पूरा ऑपरेशन हैदराबाद के गाचीबाउली, कोंडापुर और बाहरी इलाकों में छापेमारी के बाद सामने आया, जहाँ पुलिस ने कई सर्वर, क्रिप्टो वॉलेट रिकॉर्ड, और संदिग्ध विदेशी लेनदेन के दस्तावेज जब्त किए।

क्या था यह साइबर-इंटिमिडेशन मॉडल और कैसे चल रहा था 250 मिलियन डॉलर का नेटवर्क?

पुलिस के मुताबिक, यह नेटवर्क एक सामान्य साइबर-फ्रॉड गैंग नहीं था, बल्कि एक संगठित अंतरराष्ट्रीय गिरोह था, जिसकी रणनीति थी—पहले किसी बड़ी दवा-कंपनी के संवेदनशील R&D डेटा पर अनधिकृत पहुँच बनाना, उसके बाद उसी डाटा को बाजार में लीक करने या प्रतिस्पर्धी कंपनियों तक पहुँचाने की धमकी देकर लाखों-करोड़ों डॉलर की उगाही करना।


फार्मा कंपनियों, खासकर वे जो US launch की तैयारी में होती हैं, अक्सर ऐसे डिजिटल खतरों का सामना करती हैं, क्योंकि उनकी दवाओं की नई पीढ़ी—जैसे liraglutide benefits वाले इंजेक्शन, ग्लूकोज-रेग्युलेशन को प्रभावित करने वाली मॉलिक्युलर थेरेपी, और तेजी से बढ़ती weight-loss injection मार्केट—बहुत अधिक कीमती मानी जाती है।


यही कारण है कि यह गिरोह कंपनी के ऐसे विभागों को लक्ष्य बना रहा था, जहाँ US-based clinical trial data, obesity-drug efficacy रिपोर्ट, और उत्पादन लागत संबंधी संवेदनशील रिकॉर्ड रखे जाते हैं।

डायबिटीज और ओबेसिटी—क्यों बनते हैं फार्मा कंपनियाँ ऐसे साइबर हमलों का आसन निशाना?

भारत सहित दुनिया भर में diabetes treatment और obesity management का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है। WHO के अनुसार, दुनिया में 77 करोड़ से अधिक लोग प्री-डायबिटिक या डायबिटिक स्थिति में हैं, वहीं भारत में लगभग 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित बताए जाते हैं।


उधर, ओबेसिटी की समस्या भी महामारी-स्तर तक पहुँच चुकी है—2022 की ग्लोबल रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 220 मिलियन वयस्क वर्ग ज्यादा वजन या मोटापे से ग्रसित हैं। ऐसे में वे दवाएँ, जो weight control, metabolic regulation और appetite suppression में कारगर मानी जाती हैं—जैसे लिराग्लूटाइड (liraglutide)—बाज़ार में भारी प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन जाती हैं।


इसी बाज़ार मूल्य और R&D खर्च के कारण कोई भी डेटा-लीक, ट्रायल-रिजल्ट में छेड़छाड़ या US launch से जुड़ी जानकारी का बाहरी दुनिया में आना कंपनी को अरबों का नुकसान पहुँचा सकता है। यही वजह है कि साइबर गैंग इन कंपनियों को हाई-वैल्यू टार्गेट की तरह देखते हैं।

कौन-सी दवा और किस प्रकार का डेटा निशाने पर था?

पुलिस ने आधिकारिक रूप से दवा का नाम उजागर नहीं किया है, पर सूत्रों के अनुसार यह वही मॉलिक्यूल था, जिसे विश्व-स्तर पर next-gen obesity drug माना जाता है और जिसका क्लिनिकल ट्रायल डेटा US-FDA में रेग्युलेटरी सबमिशन के चरण में था।


इस दवा का काम GLP-1 receptor activation पर आधारित है—एक ऐसा मैकेनिज़्म जो शरीर में भूख को नियंत्रित करता है, इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ाता है और धीरे-धीरे शरीर के वजन को कम करता है। यही गुण इसे “liraglutide benefits” जैसी अन्य दवाओं की तरह लोकप्रिय बनाते हैं।


यह साइबर गिरोह संभवतः trial efficacy data, patient-response curves, adverse-effect लॉग और internal cost-projections तक पहुँचने की कोशिश में था, ताकि इन दस्तावेजों को लीक करने की धमकी देकर कंपनी से भारी रकम उगाही करे।

पुलिस के अनुसार गिरोह का मोडस ऑपरेण्डी क्या था?

हैदराबाद साइबर क्राइम DCP ने बताया—

“गिरोह पहले कंपनी के नेटवर्क में फ़िशिंग या मैलवेयर आधारित back-door तैयार करता था। इसके बाद वे संवेदनशील फ़ाइलों की कॉपी बनाते थे और अधिकारियों को धमकी देते कि यदि माँगी गई रकम न दी गई, तो डेटा को ‘डार्कनेट’ पर प्रकाशित कर दिया जाएगा।”


इस रैकेट की खासियत यह थी कि यह सिर्फ डेटा चोरी तक सीमित नहीं था, बल्कि यह digital intimidation—यानी निरंतर ईमेल-हैकिंग, फर्जी कानूनी नोटिस, international spoof-calls और manipulated financial threats—का भी इस्तेमाल करता था। पुलिस ने ऐसे दर्जनों ईमेल टेम्प्लेट और ऑडियो-रिकॉर्डिंग जब्त की हैं।

क्या यह गिरोह भारत से चलता था या अंतरराष्ट्रीय लिंक भी थे?

साइबर क्राइम अधिकारियों का कहना है कि यह नेटवर्क बहुस्तरीय था।

  • मुख्य कॉल-हैंडलर हैदराबाद में

  • डेटा-ब्रोकर्स बैंकॉक और काठमांडू में

  • फर्जी कंपनियाँ दुबई और सिंगापुर में

  • वहीं, फंड-ट्रांसफर के लिए क्रिप्टो-वॉलेट यूरोप से ऑपरेट होता था

इससे स्पष्ट है कि यह अकेला भारत-केंद्रित स्कैम नहीं था, बल्कि फार्मा-डेटा चोरी के वैश्विक बाज़ार में शामिल एक बड़ा रैकेट था।

क्या फार्मा कंपनी की तरफ से आधिकारिक प्रतिक्रिया आई?

कंपनी के प्रवक्ता ने कहा—

“हमारी प्राथमिकता हमारे शोध डेटा और मरीज सुरक्षा से संबंधित हर जानकारी को सुरक्षित रखना है। पुलिस की कार्रवाई महत्वपूर्ण है और हम पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं। साइबर-हमले आज के समय में वास्तविक खतरा हैं, खासकर जब आपकी दवा वज़न घटाने और diabetes treatment जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में उपयोग होती हो।”


कुछ स्वतंत्र साइबर-विशेषज्ञों का कहना है कि फार्मा कंपनियों को अब पारंपरिक IT सुरक्षा से आगे बढ़कर AI-driven threat-prediction systems अपनाने की ज़रूरत है।

क्या मरीजों की जानकारी (patient data) भी खतरे में थी?

प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, patient-identity logs तक पहुँचने का कोई सबूत नहीं मिला है। परन्तु पुलिस यह भी पुष्टि कर रही है कि गिरोह ने clinical trial response sheets के कुछ हिस्से देखने की कोशिश की थी, जो कि किसी भी कंपनी के लिए गंभीर चिंता का विषय होता है।

क्या इस घटना से obesity-drug और diabetes treatment बाजार पर असर पड़ेगा?

जानकारों का कहना है कि ऐसे साइबर हमले दवा-कंपनियों के US launch schedules को धीमा कर देते हैं।
यदि R&D टीमों को सुरक्षा खामियों को ठीक करने में अतिरिक्त समय देना पड़े, तो regulatory submission, FDA verification और manufacturing scale-up की timeline प्रभावित होती है।


यह देरी न केवल कंपनी को आर्थिक नुकसान पहुँचाती है, बल्कि उन लाखों मरीजों को भी प्रभावित करती है, जिनके लिए weight-loss injection therapy, diabetes treatment alternatives और metabolic disorders से निपटने वाली आधुनिक दवाएँ जीवन बदलने वाली साबित हो सकती हैं।

Conclusion

यह मामला साफ दिखाता है कि फार्मा-शोध से जुड़ा डेटा अब सोने से भी अधिक कीमती बन चुका है। हैदराबाद पुलिस की कार्रवाई से यह संकेत मिलता है कि भारत में भी ऐसे रैकेट सक्रिय हो चुके हैं जो दुनिया भर की हाई-वैल्यू दवा-कंपनियों को निशाना बना रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में भी diabetes treatment, obesity drug innovation, और weight-loss injection market लगातार बढ़ेंगे। ऐसे में कंपनियों को साइबर सुरक्षा में दोगुना निवेश करना होगा ताकि US launch योजनाएँ बाधित न हों।


भारत में इस दवा के लॉन्च की चर्चा अभी सार्वजनिक नहीं है, पर विशेषज्ञ मानते हैं कि जब भी यह दवा आएगी, यह मेटाबॉलिक बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए नई उम्मीद बन सकती है—बशर्ते कि साइबर खतरों पर काबू पाया जाए।

References:
  • Telangana Cyber Crime Wing, Investigation Briefing — 20 Nov 2025

  • Global Obesity & Diabetes Data — WHO, 2024

  • Clinical Drug Trial Security Analysis — PharmaTech Review, 2025

  • Expert Quote — Company Spokesperson (Statement given to press)

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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