देशभर के हज़ारों छोटे फार्मा उद्योग बंद होने की कगार पर: सख्त निरीक्षणों से बाज़ार में दवा संकट की आशंका तेज़

केंद्रीय औषधि निरीक्षणों में सामने आए गंभीर मानकों के उल्लंघन ने देशभर के हजारों छोटे दवा निर्माताओं को बंद होने के कगार में खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि उत्पादन ठप हुआ तो एंटीबायोटिक्स, डायबिटीज़ और ब्लड प्रेशर जैसी ज़रूरी दवाओं की कमी और कीमतों में उछाल से करोड़ों मरीज प्रभावित हो सकते हैं।

PHARMA NEWS

ASHISH PRADHAN

11/16/20251 min read

India’s small drug manufacturing factories facing closure after strict inspections
India’s small drug manufacturing factories facing closure after strict inspections
प्रस्तावना

देशभर में दवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए चल रहे कड़े निरीक्षणों ने छोटे और मध्यम दवा निर्माताओं को एक बड़े संकट में ला खड़ा किया है। हजारों यूनिटें आधुनिक मानकों और नियमों को पूरा न कर पाने की वजह से बंद होने की स्थिति में पहुँच रही हैं। किन कंपनियों पर सीधा असर पड़ा है, सरकार कौन-से बदलाव लागू कर रही है, कार्रवाई अचानक तेज़ क्यों हुई, और देश के किन हिस्सों में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई दे रहा है—इन सभी सवालों के जवाब आपको इस रिपोर्ट में विस्तार से मिलेंगे। साथ ही, दवा उपलब्धता और कीमतों पर पड़ने वाले संभावित असर को भी हम गहराई से समझाएंगे।

छोटे दवा निर्माता संकट में क्यों आए?

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय दवा उद्योग ने ग्लोबल स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बनाई है, जहाँ भारत दुनिया भर में कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाली दवाएँ उपलब्ध कराने के लिए जाना जाता है। हालाँकि, इसी सफलता की सतह के नीचे एक बड़ा ढांचा ऐसा भी है जो अत्याधुनिक गुणवत्ता मानकों (Good Manufacturing Practices – GMP) को पूरा नहीं कर पाता।

सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, देश में लगभग 10,500 छोटे और मध्यम दवा उत्पादक हैं, जिनमें से एक बड़ी संख्या पुरानी मशीनरी, अपर्याप्त लैब सुविधाओं और कम प्रशिक्षित तकनीकी स्टाफ के कारण लगातार चेतावनियों का सामना कर रही थी।

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा हाल में शुरू की गई Intensive Risk-Based Inspection Drive ने इस ढांचे की कई कमियों को उजागर कर दिया। निरीक्षणों में सामने आया कि लगभग 35–40% इकाइयाँ ऐसे हालात में दवाएँ बना रही थीं, जो आधुनिक गुणवत्ता मानकों के अनुकूल नहीं थीं।

क्या हो सकते हैं बड़े परिणाम?—दवा बाजार पर संभावित प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि ये हजारों छोटे प्लांट बंद होते हैं तो इसका असर न केवल घरेलू बाजार बल्कि निर्यात पर भी पड़ेगा।

1. ज़रूरी दवाओं (Essential Drugs) की कमी

छोटे प्लांट अक्सर बनाते हैं:

  • एंटीबायोटिक्स

  • बुखार/दर्द की दवाएँ

  • मधुमेह (diabetes) की दवाएँ

  • हाई ब्लड प्रेशर की दवाएँ

  • बच्चों की सिरप और इंजेक्शन

ये वे दवाएँ हैं जो रोज़मर्रा के इलाज में इस्तेमाल होती हैं। यदि उत्पादन घटता है तो बाज़ार में तुरंत कमी देखी जा सकती है।

2. दाम बढ़ने की संभावना

कई विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि “यदि उत्पादन क्षमता घटती है और आपूर्ति सीमित होती है तो कीमतें बढ़ना लगभग तय है।”

3. मरीजों की जेब पर सीधा प्रभाव

भारत में लगभग 7.7 करोड़ डायबिटीज़ मरीज और 20 करोड़ हाइपरटेंशन के रोगी हैं। इनकी दवाओं के उत्पादन में कोई भी व्यवधान बड़े सामाजिक-स्वास्थ्य संकट को जन्म दे सकता है।

क्वालिटी स्टैंडर्ड क्या हैं और क्यों हैं महत्वपूर्ण?

दवाओं की गुणवत्ता केवल प्रयोगशाला परीक्षण भर कर लेने से नहीं होती। बल्‍कि आधुनिक GMP के मानकों में जो प्रमुख पहलू आते हैं, वे भी महत्‍तवपूर्ण हैं जो निम्‍न है—

  • निर्जीव (sterile) उत्पादन पर्यावरण

  • स्वचालित मशीनरी

  • बैच-वार विस्तृत दस्तावेज़ीकरण

  • प्रशिक्षित विशेषज्ञ

  • नियमित गुणवत्ता परीक्षण

  • तापमान और आर्द्रता नियंत्रण

निरीक्षणों में पाया गया कि छोटे प्लांट्स में अक्सर पुराने उपकरण, अपर्याप्त परीक्षण सुविधाएँ और असंगत रिकॉर्ड पाए गए।

एक वरिष्ठ दवा नियामक अधिकारी के शब्दों में:

“जो उत्पादन यूनिट मरीजों के स्वास्थ्य से जुड़ी जिम्मेदारी निभाती है, उनसे अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानक की अपेक्षा स्वाभाविक है। यह अभियान उद्योग को मजबूत करने के लिए चलाया जा रहा है, न कि कमजोर करने के लिए।”

क्या ये प्लांट्स सुधार करके बच सकते हैं?

सरकार ने अपडेट्स के लिए तीन-चरणीय योजना सुझाई है—

1. Immediate Corrective Action (ICA) – तुरंत सुधार योग्य खामियाँ

2. Major Infrastructure Upgradation (MIU) – मशीनरी व तकनीकी सुधार

3. Mandatory Re-Inspection – सुधार के बाद नया निरीक्षण

परंतु छोटे प्लांट्स के लिए लाखों-करोड़ों रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश जुटाना आसान नहीं है। कई यूनिट मालिक बताते हैं कि बैंक लोन और स्कीम्स के बावजूद लागत बढ़ने से वे प्रबंधन नहीं कर पा रहे।

सबसे ज्यादा प्रभावित सेक्टर: डायबिटीज़ और ऑबेसिटी दवाएँ

भारत में डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या हर साल तेजी से बढ़ रही है। इसी तरह मोटापे के इलाज के लिए उपयोग होने वाली इंजेक्शन आधारित दवाएँ, जैसे liraglutide की मांग भी बढ़ी है।

छोटे उत्पादकों में से कुछ इन्हें बनाने के लिए कच्चा माल सप्लाई या जेनरिक फॉर्मूलेशन बनाते हैं। यदि ये इकाइयाँ बंद होती हैं तो—

  • diabetes treatment प्रभावित होगा,

  • weight loss injection की आपूर्ति घट सकती है,

  • liraglutide benefits का लाभ उठाने वाले मरीजों को दवा तलाशने में कठिनाई हो सकती है।

“Industry Under Pressure”: विशेषज्ञों की जुबानी

फार्मा उद्योग सलाहकार, डॉ. संदीप त्रिवेदी कहते हैं:

“निरीक्षण ज़रूरी हैं, लेकिन इतने बड़े पैमाने पर बंद होने का खतरा उद्योग को अस्थिर कर सकता है। समाधान यह होना चाहिए कि छोटे निर्माताओं को तकनीकी सहायता और आसान वित्त उपलब्ध कराया जाए।”

मेडिकल रिटेल चेन मैनेजर, नेहा बंसल बताती हैं:

“पहले ही बाजार में कई एंटीबायोटिक्स और कुछ डायबिटीज़ दवाओं की कमी देखी जा रही है। यदि यूनिट्स बंद होती हैं तो दवा की निरंतरता सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगी।”

क्या हो सकता है समाधान? — रास्ते तलाशते उद्योग और सरकार

विचाराधीन समाधान:

  1. एक राष्ट्रीय फंड बनाया जाए जो छोटे निर्माताओं को मशीनरी अपग्रेड करने में मदद करे।

  2. क्लस्टर मॉडल अपनाया जाए जहाँ कई छोटी यूनिटें एक साझा उन्नत लैब व इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग कर सकें।

  3. फास्ट-ट्रैक रिअप्रूवल सिस्टम लागू हो जिससे सुधार के बाद प्लांट जल्दी शुरू हो सके।

नीति विशेषज्ञों का मानना है कि “भारत जैसे देश में 70% दवा उत्पादन छोटे और मध्यम स्तर के प्लांट द्वारा होता है। इन्हें बंद करना संभव नहीं, उन्हें मजबूती देना ही समाधान है।”

निष्कर्ष

दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है, परंतु इसके साथ ही यह भी ज़रूरी है कि ऐसे कठोर कदम उन लाखों मरीजों के लिए नई स्वास्थ्य चुनौतियाँ न पैदा करें जो रोज़ाना दवाओं पर निर्भर हैं—चाहे वह diabetes treatment हो, obesity drug हो या साधारण एंटीबायोटिक। यदि हज़ारों प्लांट्स वाकई बंद हो गए तो न केवल drug shortages बल्कि दामों में वृद्धि और मरीजों की तकलीफ़ बढ़ने की पूरी आशंका है।

भविष्य अब इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार और उद्योग मिलकर किस तरह से एक संतुलित रास्ता निकालते हैं— जहाँ दवा की गुणवत्ता सर्वोच्च रहे और दवाओं की उपलब्धता भी बाधित न हो।

स्रोत
  • भारतीय दवा उद्योग निरीक्षण रिपोर्ट (2024–25)

  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

  • फेडरेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री डेटा

  • विषय विशेषज्ञों व उद्योग प्रतिनिधियों के साक्षात्कार

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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