क्या चावल और गेहूँ छोड़ना सच में डायबिटीज़ को काबू करता है? जानिए विज्ञान और सच्चाई के पीछे की पूरी कहानी
भारत में बढ़ते डायबिटीज़ और मोटापे के बीच अक्सर यह सवाल उठता है — क्या चावल और गेहूँ छोड़ देना शुगर कंट्रोल की कुंजी है? जानिए क्या कहते हैं शोध, डॉक्टर और ICMR-INDIAB डेटा — और कैसे आप अपने भोजन में सरल बदलावों से ब्लड शुगर सुधार सकते हैं।
MEDICAL NEWS
ASHISH PRADHAN
11/8/20251 min read


क्या चावल और गेहूं छोड़ने से ब्लड शुगर कंट्रोल होगा?
परिचय
देश में लाखों लोग इस सवाल को लेकर उलझन में रहते हैं: अगर हम रोज़मर्रा की जीवनशैली में प्रमुख स्थान रखने वाले अनाज जैसे चावल और गेहूँ को छोड़ दें — तो क्या इससे मधुमेह (डायबिटीज़) या ब्लड शुगर को नियंत्रित करना आसान हो जाएगा? इस लेख में हम देखेंगे कौन इस बदलाव की योजना बना रहा है, क्या वास्तव में बदलाव है, कहाँ यह प्रचलित है, कब चर्चा में आया, क्यों यह विषय महत्त्वपूर्ण है और कैसे इस तरह का बदलाव किया जा सकता है — साथ ही फूड साइंस, शोध एवं व्यवहारिक सुझावों की विस्तार से व्याख्या करेंगे।
तो चलिए शुरुआत करते हैं — आज की स्थिति, हमारे देश की अनाज-आधारित खपत, और यह समझने की कोशिश करते हैं कि चावल या गेहूँ को छोड़ना एक समाधान हो सकता है या सिर्फ एक मिथक।
पृष्ठभूमि
पहले यह समझना ज़रूरी है कि भारत में मधुमेह और मोटापे (obesity) की स्थिति क्या है, और अनाज-आधारित डाइट का इसमें क्या योगदान है।
भारत में डायबिटीज और मोटापे की झलकी
हमारे देश में टाइप 2 डायबिटीज़ और मोटापा तेजी से बढ़ रहा है। पुरानी पारंपरिक जीवनशैली से हटकर आज अधिक बैठने-वाले काम, कम शारीरिक गतिविधि, और उच्च कार्बोहाइड्रेट लेने की प्रवृत्ति ने इस समस्या को और भी बढ़ाया है। हाल-ही में Indian Council of Medical Research-INDIAB सर्वेक्षण में पाया गया कि भारतीयों की दैनिक कैलोरी सेवन का लगभग 62% हिस्सा कार्बोहाइड्रेट से आता है — जिसमें बड़ी मात्रा में सफेद चावल, मिल-गेहूँ तथा परिष्कृत अनाज शामिल हैं।
इसके अलावा, इस उच्च-कार्ब डाइट के साथ-साथ प्रोटीन सेवन काफी कम और संतृप्त वसा सेवन अपेक्षाकृत अधिक पाया गया है, जो मेटाबॉलिक जोखिम (मधुमेह, मोटापा, हृदय रोग) के लिए अहम संकेतक हैं।
अनाज-आधारित डाइट का योगदान
भारत में चावल और गेहूँ दो प्रमुख अनाज हैं — विशेष रूप से चावल दक्षिण-पूर्व, पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में तथा गेहूँ उत्तर एवं मध्य भारत में व्याप्त है। इनका स्थान हमारी थाली में स्थिर रहा है। लेकिन जब गुणवत्ताहीन कार्बोहाइड्रेट — जैसे सफेद चावल, रिफाइंड गेहूँ (मैदा), मील्ड अनाज — उच्च मात्रा में खाये जाते हैं, तो ब्लड शुगर में तेज उछाल, इंसुलिन प्रतिरोध और धीरे-धीरे मेटाबॉलिक विकारों का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, Dr Kunal Sood ने ताज़ा बताया कि भारतीय भोजन में सफेद चावल और रिफाइंड गेहूँ लगभग 75% कैलोरी तक ले जाते हैं, जिससे रक्त शुगर में तेजी से वृद्धि और इंसुलिन प्रतिरोध की प्रवृत्ति दिखी है।
अनाज-भोजन और ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI)
बहुत से लोग मानते हैं कि चावल या गेहूँ का विकल्प सीधे-सीधे डायबिटीज़ नियंत्रण में सहायक होगा। इस सोच के पीछे यह धारणा है कि गेहूँ का जी आई चावल से कम है, अतः वह बेहतर विकल्प होगा। लेकिन शोध बताते हैं कि वास्तव में—जब एक मिश्रित भोजन के हिस्से के रूप में गेहूँ (रोटी) और चावल बराबर उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट सामग्री (AvCHO) के साथ दिए जाते हैं—तो दोनों का ग्लाइसेमिक प्रभाव लगभग एक-सा पाया गया है।
उदाहरण के लिए एक अध्ययन में 10 स्वस्थ वयस्कों पर परीक्षण किया गया जहाँ गेहूँ की रोटी और चावल-मिश्रित भोजन के बाद जी आई क्रमशः 85.5 ± 11.8% और 83.6 ± 11.4% रही—अर्थात किसी महत्वपूर्ण भिन्नता नहीं मिली।
यह कहना गलत नहीं होगा कि “अनाज छोड़ना” एक सहज समाधान नहीं है—मात्र प्रकार, मात्रा और भोजन के संदर्भ (मिश्रित भोजन, फाइबर, प्रोटीन के साथ) अहम भूमिका निभाते हैं।
क्या वास्तव में चावल और गेहूँ छोड़ना शुगर नियंत्रण में सहायक है?
यहाँ हम कुछ प्रमुख प्रश्नों के माध्यम से इस विषय का विश्लेषण करेंगे।
प्रश्न 1: क्या चावल या गेहूँ पूरी तरह छोड़ना ज़रूरी है?
शब्दों में कहें, तो “हाँ” और “नहीं” दोनों हो सकते हैं। क्यों? क्योंकि यदि आप पूरी तरह अनाज बंद कर देंगे लेकिन संतुलन न करेंगे, तो पोषण-घटक खामियों और ब्लड शुगर की अनियंत्रित झलकियों का सामना कर सकते हैं। दूसरी ओर, यदि आप अनाज के प्रकार, गुणवत्ता और मात्रा पर नियंत्रण रखें, और साथ में फाइबर, प्रोटीन व स्वस्थ वसा शामिल करें — तो निश्चित रूप से धीरे-धीरे ब्लड शुगर बेहतर नियंत्रित हो सकता है।
उदाहरण के तौर पर, यदि आप सफेद चावल की जगह ब्राउन राइस, बाजरा, ज्वार, रागी जैसे अनाज चुनते हैं; या गेहूँ के बजाय मल्टीग्रेन आटा, ओट्स-मिक्स आदि अपनाते हैं; और साथ ही भोजन के साथ दाल-सब्ज़ी-प्रोटीन भी बढ़ाते हैं — तो मधुमेह के जोखिम या नियंत्रण की दिशा में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं। वास्तव में, एक लेख में बताया गया है कि निम्न-जीआई (low GI) अनाज जैसे बाजरा, फॉक्सटेल मिलेट, कोडो मिलेट आदि रक्त शुगर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।
प्रश्न 2: क्या सिर्फ चावल और गेहूँ को बदल देने से शुगर कंट्रोल हो जाएगी?
यहाँ ध्यान देने योग्य है कि केवल चावल या गेहूँ को बदल देना पर्याप्त नहीं है। अन्य कारक जैसे- कुल कार्बोहाइड्रेट मात्रा, भोजन के संग-संग प्रोटीन-फाइबर-वसा का अनुपात, शारीरिक गतिविधि, शरीर का वजन, इंसुलिन संवेदनशीलता आदि भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, ICMR-INDIAB डेटा बताते हैं कि सिर्फ गेहूँ को चावल से बदल देने अथवा चावल को गेहूँ से बदल देने से जोखिम कम नहीं हुआ, बल्कि कार्बोहाइड्रेट का कुल प्रतिशत कम करना और प्रोटीन स्रोत बढ़ाना ज्यादा असरदार था।
प्रश्न 3: अगर छोड़ना हो तो कितनी मात्रा में?
अनाज छोड़ना नहीं बल्कि मात्रा को नियंत्रित करना अधिक व्यावहारिक सलाह है। उदाहरण स्वरूप, अगर आपकी प्लेट में नियमित रूप से दो कटोरी सफेद चावल होती है, तो उसे एक कटोरी या उससे भी कम करना, साथ में प्लेट में सब्ज़ियाँ, दाल-प्रोटीन और सलाद का हिस्सा बढ़ाना बेहतर रणनीति है। इसके अतिरिक्त, गेहूँ-रोटी का सेवन यदि हो रहा है, तो पूर्ण गेहूँ (whole wheat) या मिलेट्स हो सकते हैं, लेकिन फिर भी एक सीमित हिस्से में। अधिकारिक रूप से कोई “एक-साइज-फिट्स-ऑल” मात्रा नहीं है — व्यक्तिगत स्वास्थ्य, वजन, एक्टिविटी लेवल तथा डॉक्टर/न्यूट्रिशनिस्ट की सलाह महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 4: क्या एक प्रकार का अनाज चुनना बेहतर है — चावल या गेहूँ?
इस पर शोध मिश्रित परिणाम देते हैं। जैसा पहले बताया गया — एक अध्ययन में गेहूँ रोटी और चावल-मिश्रित भोजन में कोई महत्वपूर्ण GI फरक नहीं पाया गया था। दूसरी ओर, सफेद चावल की अधिक खपत को मधुमेह के जोखिम से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए, बहुत-सी परीक्षाएँ बताती हैं कि सफेद चावल में फाइबर कम, पाचन तेज़ और ग्लुकोज़ तेजी से बढ़ा देने वाला हो सकता है। अतः यह कहना सही होगा कि “सफेद चावल” या “मैदा-गेहूँ” जैसे परिष्कृत अनाज को चुनना कम करना चाहिए और “पूर्ण अनाज/अनपरिष्कृत अनाज” की ओर जाना चाहिए — लेकिन यह जरूरी नहीं कि गेहूँ हमेशा चावल से बेहतर हो।
प्रश्न 5: व्यावहारिक सुझाव क्या हैं?
इस प्रकार की रणनीति अपनाई जा सकती है:
सफेद चावल की जगह ब्राउन राइस, लाल चावल, मिलेट्स जैसे बाजरा/ज्वार/रागी आदि अपनाएँ।
गेहूँ की जगह मल्टीग्रेन आटा, सोया-मिश्रित आटा, ओट्स-मिक्स का प्रयोग करें।
अनाज के हिस्से (portion) को कम रखें और प्लेट में सब्ज़ियाँ, दाल-प्रोटीन, सलाद अधिक रखें।
भोजन के तुरंत बाद ब्लड शुगर चेक करने वालो के लिए देखना उपयोगी हो सकता है कि किस अनाज-मिश्रित भोजन के बाद उछाल (spike) ज्यादा आता है।
ऑर नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, तनाव प्रबंधन — ये सभी कारक शुगर नियंत्रण में अहम भूमिका निभाते हैं।
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विशेषज्ञों के विचार
डॉक्टर Kunal Sood कहते हैं । “भारतीय भोजन में अभी भी सफेद चावल और रिफाइंड गेहूँ का बोलबाला है, और इस वजह से ब्लड शुगर में तेजी से उछाल और इंसुलिन प्रतिरोध जैसी स्थितियाँ बढ़ रही हैं,”
एक शोध समूह ने निष्कर्ष दिया है — “जब अनाज (चावल या गेहूँ) को समान मात्रा में उपलब्ध कार्बोहाइड्रेट (AvCHO) के अंतर्गत दिया जाता है, तो मिश्रित भोजन में दोनों का ग्लाइसेमिक प्रतिक्रिया लगभग समान पाई गई.”
इसके अलावा ICMR-INDIAB सर्वेक्षण में यह पाया गया है — “कार्बोहाइड्रेट से कैलोरी का हिस्सा जितना अधिक होगा, मधुमेह और प्रीडायबिटीज़ का जोखिम उतना ही होगा; इसके बजाय प्रोटीन को 5% कैलोरी स्थान देने से जोखिम में कमी देखने को मिली.”
निष्कर्ष
इस पूरे विश्लेषण के बाद यह कहना बेहतर होगा कि चावल और गेहूँ को पूरी तरह छोड़ना जरूरी नहीं है, बल्कि उनका प्रकार, गुणवत्ता, मात्रा, और भोजन के संदर्भ-संचालन (meal context) महत्वपूर्ण हैं। यदि आप निम्नलिखित दिशा-निर्देश अपनाएँ —
सफेद चावल/मैदा-गेहूँ की जगह बेहतर (ब्राउन, मिलेट्स, अनपरिष्कृत अनाज) चुनें,
अनाज की मात्रा कम करें और भोजन के साथ दाल-सब्ज़ी-प्रोटीन रातारात शामिल करें,
नियमित व्यायाम व सक्रिय जीवनशैली अपनाएँ — तो निश्चित रूप से आपकी ब्लड शुगर कंट्रोल में बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।
भारत जैसे देश में जहाँ चावल-रोटी-सब्ज़ी पर भोजन आधारित है, वहाँ एक पूरी तरह “अनाज छोड़ने” की सलाह व्यवहार में टिकाऊ नहीं हो सकती; बल्कि “अनाज बदलना + मात्रा नियंत्रण + संतुलित प्लेट” रणनीति ज़्यादा व्यावहारिक है।
भविष्य में यह देखा जाना चाहिए कि क्या अनाज-भोजन में ऐसे सुधार, जिसमें प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट कम हो, प्रोटीन-फाइबर बढ़े और नियमित व्यायाम शामिल हो, दीर्घकालीन रूप से HbA1c, इंसुलिन संवेदनशीलता तथा मधुमेह-रोकथाम (prevention) में असर दिखाते हैं।
एक बात स्पष्ट है — यह अकेले “चावल या गेहूँ छोड़ना” नहीं बल्कि सम्पूर्ण जीवनशैली-संशोधन (diet + exercise + behaviour) का हिस्सा होना चाहिए l
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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