क्या स्वीटनर्स से घटेगा वजन? WHO की चेतावनी और नए शोधों का खुलासा
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 2023 में कहा कि नॉन-शुगर स्वीटनर्स वजन घटाने या डायबिटीज़ रोकने में मददगार नहीं हैं। हालिया शोधों ने दिखाया कि आर्टिफिशियल और नेचुरल स्वीटनर्स अल्पकालिक रूप से कैलोरी घटा सकते हैं, लेकिन दीर्घकालीन प्रभाव अस्पष्ट हैं। भारत में स्टेविया जैसे विकल्प बढ़ रहे हैं, मगर विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं — सिर्फ स्वीटनर्स से वजन नहीं घटता, स्वस्थ जीवनशैली ज़रूरी है।
HEALTH TIPS
ASHISH PRADHAN
11/12/20251 min read


आर्टिफिशियल या नेचुरल स्वीटनर्स का वजन घटाने में क्या भूमिका है?
परिचय
वजन नियंत्रित करने की चुनौतियों के बीच मीठा पर स्वीटनर्स (sweeteners) – जो पारंपरिक शुगर की जगह उपयोग किए जाते हैं – कितने प्रभावी और सुरक्षित हैं, यह सवाल आज कई विशेषज्ञों और आम लोगों के बीच गूंज रहा है। किसने, कब, कहां तथा क्यों इस विषय को गंभीरता से लिया है? इसकी शुरुआत होती है जब विश्वव्यापी रूप से World Health Organization (WHO) ने 2023 में जारी अपनी गाइडलाइन में कहा कि “नॉन-शुगर स्वीटनर्स” (NSS) को वजन नियंत्रण या गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) को कम करने के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए।
यह गाइडलाइन तब सामने आई जब मोटापा, 2 प्रकार की डायबिटीज (type 2 diabetes) और विभिन्न जीवनशैली-रोगों में अचानक वृद्धि हो रही थी। उदाहरणस्वरूप, आज भारत में और विश्वभर में मोटापे (obesity) तथा डायबिटीज की दरें चिंताजनक हैं। इसके पीछे कारणों में हैं – उच्च कैलोरी आहार, शुगर-युक्त पेय, कम गतिशील जीवनशैली। ऐसे में “शुगर नहीं, स्वीटनर लें तो क्या वजन कम होगा?” जैसी उम्मीदें पैदा हुईं।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि Swiiteners क्या हैं, उनका व्यवहार शरीर में कैसे होता है, मोटापा एवं डायबिटीज-प्रबंधन में उनका उपयोग किन सीमाओं और विवादों के साथ हुआ है, तथा आगे क्या दिशा-निर्देश संभव हैं।
पृष्ठभूमि – मोटापा, डायबिटीज एवं उपचार की चुनौतियाँ
दुनिया भर में मोटापा एवं डायबिटीज का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। मोटापा न केवल जीवनशैली रोगों का पहलू है बल्कि डायबिटीज का भी प्रमुख जोखिम तत्व बन चुका है। ऐसे में समाधान तलाशते हुए लोग आहार में शुगर की मात्रा घटाने के विकल्पों की ओर बढ़े – स्वीटनर्स इसी संदर्भ में सामने आए।
स्वीटनर्स, या अंग्रेज़ी में “non-nutritive sweeteners” (NNS) अथवा “low-/no-calorie sweeteners” (LCS), शुगर के विकल्प के रूप में उपयोग किए जाते हैं, जिनमें कैलोरी बहुत कम या शून्य होती है।
उदाहरणस्वरूप यदि एक व्यक्ति नियमित रूप से शुगरयुक्त पेय ले रहा था, और उसे कम-शुगर या शुगर-रहित विकल्पों में बदल दिया जाए, तो कैलोरी इन्टेक कम हो सकती है, जिससे वजन पर सकारात्मक असर होने की संभावना बनी – यह विचारशील सिद्धांत है।
लेकिन यहाँ बड़ी चुनौती यह है कि वास्तविक जीवन में सिर्फ स्वीटनर्स बदलने से क्या स्पष्ट रूप से वजन कम होगा और वह स्थायी होगा? नियंत्रण-अध्ययन, मानव डेटा, गुट माइक्रोबायोम (gut microbiota) पर प्रभाव, दीर्घ-कालीन प्रभाव आदि इस दृष्टि से जटिल साबित हुए हैं।
स्वीटनर्स कैसे काम करते हैं?
स्वीटनर्स का कार्य
स्वीटनर्स का सिद्धांत बहुत सरल दिखता है – वे शुगर की जगह बेहतर स्वाद देते हैं और कैलोरी कम या शून्य होती है। लेकिन शरीर में उनका प्रभाव उतना सीधे नहीं है। उदाहरण के लिए, जैसे शुगर सेवन से इंसुलिन, ग्लूकोज, भूख-संतुष्टि आदि पर प्रभाव होता है, वैसे ही स्वीटनर्स तंत्र में विभिन्न तरह से काम कर सकते हैं।
शोध से पता चलता है कि कुछ स्वीटनर्स – जैसे आस्पार्टेम, सुक्रालोज़ – स्वीट-टेस्ट रिसेप्टर्स (T1R परिवार) को सक्रिय कर सकते हैं, या आंत में स्वीटनर-उपभोग के बाद गट माइक्रोबायोम (gut microbiota) को बदल सकते हैं which may indirectly affect ऊर्जा उपयोग (energy expenditure), भूख (satiety) और ग्लूकोज होमियोसिस।
उदाहरण के लिए, एक नवीन अध्ययन में पाया गया कि स्वीकृत स्वीटनर्स समूह में एक वर्ष बाद हल्की वजन-न्यूनता देखी गई और गुट माइक्रोबायोम में सुधार हुआ, जबकि कार्डियो-मेटाबॉलिक जोखिम चिन्हों (risk markers) में विशेष बढ़ोतरी नहीं हुई थी।
अपेक्षित प्रभाव एवं क्लीनिकल अध्ययन
स्वीटनर्स-वित्तिक अध्ययनों में यह देखा गया है कि जब शुगर को स्वीटनर्स से बदला गया तो कुल ऊर्जा सेवन (energy intake) कम हुआ और वजन में कमी पाई गई। उदाहरण के लिए, एक मेटा-विश्लेषण में कहा गया है कि यदि 1 मेगाजूल (~240 कैलोरी) शुगर ऊर्जा को स्वीटनर्स द्वारा प्रतिस्थापित किया जाए, तो वयस्कों में लगभग 1.06 किलोग्राम वजन कम हो सकता है।
फिर भी, जब स्वीटनर्स को पानी या निस्स्वाद नियंत्रण के रूप में देखा गया, तो उनमें वजन या बीएमआई पर फर्क नहीं पाया गया।
भारत के संदर्भ में, एक 12-सप्ताहीय यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण में देखा गया कि भारतीय वयस्कों में स्टेविया-आधारित टेबलटॉप स्वीटनर प्रयोग से वज़न व कार्डियो-मेटाबॉलिक स्वास्थ्य में सुधार दिखा।
संभावित दुष्प्रभाव एवं विवाद
हालाँकि स्वीटनर्स को सुरक्षित माना गया है, लेकिन उनके प्रभाव को लेकर विवाद भी हैं। उदाहरण के लिए – • पर्यवेक्षण अध्ययन ने बताए हैं कि स्वीटनर्स का उपयोग मोटापा, Type 2 डायबिटीज तथा अन्य जीवनशैली रोगों के साथ जुड़ा हुआ पाया गया है। • दीर्घ-कालीन मानव अध्ययनों की संख्या सीमित है, इसलिए “स्वीटनर्स = वजन घटाएंगे” यह निष्कर्ष अंकित नहीं किया जा सकता। • एक और बात यह है कि केवल स्वीटनर्स बदलने से भूख नियंत्रण, खाद्य चयन, जीवनशैली आदि अन्य कारकों को नहीं बदला जाता, इसलिए वास्तविक जीवन में परिणाम अक्सर अपेक्षानुसार नहीं होते।
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क्या स्वीटनर्स वास्तव में वजन कम करने में मदद करते हैं?
शार्ट-टर्म शोध बताते हैं कि जब शुगर को स्वीटनर्स से बदला गया, तब कैलोरी इन्टेक घटने के कारण वजन में कुछ कमी देखी गई है। लेकिन इसे “वजन नियंत्रण का समाधान” कहना अभी प्रायोगिक है क्योंकि बहुत-से लंबे-अवधि अध्ययन निष्कर्ष देने में विफल रहे हैं।
स्वीटनर्स की भूमिका डायबिटीज उपचार और मोटापे में कैसी है?
चूंकि मोटापा डायबिटीज का जोखिम बढ़ाता है, इसलिए स्वीटनर्स को डायबिटीज उपचार या मोटापे प्रबंधन के हिस्से के रूप में देखा गया है। उदाहरण के लिए, आर्टिफिशयल स्वीटनर्स शुगर की तुलना में ग्लूकोज स्तर पर तत्काल प्रभाव नहीं रखते। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि इसके उपयोग से डायबिटीज पूर्णतः नियंत्रित हो जाएगी या मोटापा खुद-ब-खुद घटेगा।
क्या भारतीय संदर्भ में इन्हें अपनाना सुरक्षित व प्रभावकारी है?
भारत में अब स्मार्ट-आहार विकल्पों की ओर झुकाव बढ़ रहा है, और स्वीटनर्स पारंपरिक मीठे उत्पादों — दही, लस्सी, मीठे पेय आदि — में प्रयोग किए जा रहे हैं। भारतीय अध्ययन (जैसे स्टेविया आधारित) में सकारात्मक संकेत मिले हैं, लेकिन यह प्रारंभिक हैं और विस्तृत दीर्घ-कालीन डेटा नहीं दिए गए। इसलिए भारतीय उपभोक्ता एवं स्वास्थ्य पेशेवरों को “स्वीटनर्स = सुरक्षित मोहर” मानने से पूर्व सावधानी बरतनी चाहिए।
विशेषज्ञों की क्या राय है?
विशेषज्ञों का मत विभाजन में है। एक ओर कई अध्ययन स्वीटनर्स को शुगर विकल्प के रूप में स्वीकारते हैं जबकि दूसरी ओर World Health Organization ने कहा है कि उन्हें वजन नियंत्रित करने के लिए उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि प्रमाण कमजोर हैं।
भारतीय डायटिशियन – उदाहरण स्वरूप Charu Dua ने कहा है कि “हाल ही के अध्ययन सुझाव देते हैं कि कुछ स्वीटनर्स जैसे आस्पार्टेम एवं सुक्रालोज़ गुट माइक्रोबायोम को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे पाचन व सूजन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।”
निष्कर्ष
स्वीटनर्स का इस्तेमाल इस दृष्टि से आकर्षक विकल्प है कि शुगर की जगह न्यून-कैलोरी विकल्प लाकर ऊर्जा इन्टेक कम किया जा सकता है, जो मोटापा और संबंधित रोगों (जैसे Type 2 डायबिटीज) के जोखिम को कम करने में योगदान दे सकता है। लेकिन यह स्पष्ट है कि स्वीटनर्स एक जादुई समाधान नहीं हैं।
भविष्य में देखें तो:
दीर्घ-कालीन मानव अध्ययन चाहिए जो दिखाएं कि विभिन्न प्रकार के स्वीटनर्स (आस्पार्टेम, सुक्रालोज़, स्टेविया आदि) भारत जैसे जनसंख्या-विविध देश में कितने सुरक्षित व प्रभावी हैं।
स्वस्थ जीवनशैली – व्यायाम, संतुलित आहार, पूरे खाद्य-संस्करण (whole food) – के साथ स्वीटनर्स को संयोजन में उपयोग करने पर ज़्यादा असरकारिता हो सकती है।
भारत में स्वीटनर्स-उद्योग, खाद्य-नियम, उपभोक्ता जागरूकता सब पर काम होना चाहिए ताकि “स्वीटनर मुक्त मीठा” व “डायबिटिक-फ्रेंडली” जैसे मार्केटिंग टैग्स सिर्फ आकर्षक हो कर नहीं बल्कि वैज्ञानिक रूप से समर्थित हों।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि यदि आप स्वीटनर्स का उपयोग कर रहे हैं तो:लेबल पढ़ें और स्वीकार्य दैनिक सेवन (ADI) देखें।
स्वीटनर्स का उपयोग “मीठे की लालसा” को पूरी तरह खत्म नहीं करता; इसलिए मीठे का सेवन पूरी तरह बंद करना व पूरे खाद्य-रूपों की ओर लौटना बेहतर विकल्प है।
यदि आप मोटापा, डायबिटीज या हृदय-रोग के जोखिम में हैं, तो इस विकल्प को अपने चिकित्सक, डायटिशियन की सलाह के साथ अपनाएँ।
भारत में आने वाले वर्षों में संभव है कि स्वीटनर्स आधारित “लो-शुगर” उत्पादों का उपयोग और बढ़े, लेकिन उन्हें वजन घटाने के लिए अकेले relied उपाय नहीं माना जाना चाहिए। स्वास्थ्य-प्रबंधन एक बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसमें स्वीटनर्स सिर्फ एक उपकरण हैं।
इस प्रकार, स्वीटनर्स ने वजन नियंत्रित करने के क्षेत्र में एक “उद्भव विकल्प” के रूप में प्रवेश किया है, लेकिन उसके साथ उम्मीदों व वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है।
स्रोत
The Impact of Artificial Sweeteners on Body Weight Control & Glucose Homeostasis (PMC). 2020.
Artificial sweeteners and their implications in diabetes: a review. PMC. 2023.
WHO advises not to use non-sugar sweeteners for weight control. WHO. 15 May 2023.
Sweeteners can improve weight loss maintenance: new research. University of Leeds. 22 Mar 2024.
Use of Artificial Sweeteners in Indian Traditional Dairy Products. GavinPublishers.
Disclaimer
यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। और न ही निवेश की सलाह है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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