Abdominal Aortic Aneurysm: पेट की धमनी की यह ‘खामोश बीमारी’ बन सकती है जानलेवा, भारत में बढ़ रहा जोखिम
Abdominal Aortic Aneurysm (AAA) — पेट की मुख्य धमनी में धीरे-धीरे फैलने वाली एक ‘खामोश बीमारी’ — भारत में चिंता का विषय बन रही है। यह विकृति शुरुआत में बिना किसी लक्षण के बढ़ती है और कई बार अचानक फटने (rupture) से जानलेवा साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि 60 वर्ष से अधिक आयु वाले, धूम्रपान करने वाले और उच्च रक्तचाप वाले लोगों में इसका खतरा अधिक होता है। भारत में इस बीमारी पर जागरूकता और स्क्रीनिंग अब भी सीमित है, जिससे कई मामले देर से सामने आते हैं। समय पर पहचान और अल्ट्रासाउंड-जांच से इसे रोका जा सकता है — क्योंकि यह बीमारी ‘चुप रहती है, पर जान ले सकती है।
DISEASES
ASHISH PRADHAN
10/19/20251 min read


Abdominal Aortic Aneurysm (AAA) – एक चुपचाप बढ़ने वाली धमनी विकृति और भारत में उसका प्रभाव”
परिचय
जब हम अपनी धड़कन को सामान्य मानकर ज़िंदगी की रफ्तार में आगे बढ़ते रहते हैं, उसी वक्त हमारे शरीर के भीतर एक "खामोश खतरा" पल सकता है — Abdominal Aortic Aneurysm (AAA)। यह हृदय से निकलने वाली मुख्य धमनी की वह विकृति है जो बिना किसी चेतावनी के धीरे-धीरे फैलती जाती है।
आमतौर पर यह समस्या वृद्ध पुरुषों में पाई जाती है, खासकर धूम्रपान करने वालों और उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों में। इस स्थिति में पेट की प्रमुख धमनी (Abdominal Aorta) अपनी सामान्य चौड़ाई से लगभग डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है, मानो भीतर कोई ‘छिपा गुब्बारा’ बन रहा हो।
अक्सर इसका पता तब चलता है जब किसी अन्य कारण से अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन किया जाता है। भारत और एशिया में इसके मामले अभी कम माने जाते हैं, लेकिन इसकी “चुप” प्रकृति इसे और खतरनाक बना देती है।
धमनी की दीवार जब कमजोर पड़ती है और रक्तचाप लगातार बढ़ा रहता है, तो यह धीरे-धीरे फैलती जाती है — और अगर समय पर न पकड़ी जाए, तो फट सकती है, जो जानलेवा स्थिति बन जाती है।
यह बीमारी शुरुआत में लक्षण नहीं दिखाती, लेकिन अंदर ही अंदर बढ़ती रहती है — इसलिए जरूरी है कि हम इसे समझें, जोखिम-कारकों को पहचानें और समय रहते चिकित्सकीय जांच करवाएं। इस लेख में हम इसी साइलेंट धमनी विकृति की प्रक्रिया, जोखिम, निदान और भारत में इसकी बढ़ती प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
पृष्ठभूमि एवं संदर्भ
धमनी विकृति का विज्ञान
जब पेट की मुख्य धमनी (इन्फ्रा-रेनल ऑर्टा) अपनी सामान्य व्यास से 50 प्रतिशत या उससे अधिक बढ़ जाती है, तब इसे AAA कहा जाता है। दीवार में मौजूद कोलेजन, इलास्टिन एवं मांसपेशी ऊतकों का क्षय होता है, जिसमें मैक्रोफेज-उत्तेजना, प्रोटेइज़ (उदाहरण के रूप में मैट्रिक्स मैटलोप्रोटिऐसेज़) की सक्रियता, स्मूद मसल सेल का क्षय और धमनी दीवार का पतला-हो जाना शामिल है। इस जहरीले चक्र में, धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, एथेरोस्क्लेरोसिस (blood-vessel में चर्बी-जमाव) आदि प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
जोखिम-कारक एवं सांख्यिकी
यह विकृति विशिष्ट आबादी में अधिक पाई जाती है : पुरुष (> 60 वर्ष), धूम्रपान करने वाले, पूर्व कार्डियोवैस्कुलर रोग वाले, उच्च रक्तचाप एवं डिस्लिपिडिमिया वाले। एशियाई आबादी में AAA का अनुमानित प्रचलन लगभग 0.61 % (95 % CI, 0.37-0.85) पाया गया है।
भारत में 2016 के अनुमान के अनुसार लगभग 0.4 % प्रचलन रहा – अर्थात् लगभग 6 लाख लोगों में से एक। हालांकि, यह संख्या कम लगती है, पर कई मामलों में यह छान-बीन के अभाव की वजह से अनजाना रह जाता है।
उपचार-चुनौतियाँ
चिकित्सकीय रूप से AAA का प्रबंधन आसान नहीं है क्योंकि अधिकांश मामलों में यह लक्षण-रहित होता है और तब पता चलता है जब आयाम बढ़ चुका होता है। तनाव-माप, बढ़ने की गति (growth rate), रोगी की सह-बीमारी (comorbidity) आदि को ध्यान में रखते हुए निर्णय-लेना पड़ता है कि “देखते चलें” (watch-and-wait) या “तत्काल हस्तक्षेप” (इंटरवेंशन) किया जाए। इसके अतिरिक्त, भारत जैसे संसाधन-सीमित परिवेश में स्क्रीनिंग तथा क्षेत्रीय जागरूकता की कमी बड़े चुनौतियों में से एक है।
प्रश्नोत्तर शैली में शरीर-भाग
क्या हम “diabetes treatment”, “obesity drug”, “weight loss injection” जैसे विषयों से AAA का संबंध देख सकते हैं?
हाँ, प्रत्यक्ष संबंध कम है, पर अप्रत्यक्ष रूप से मधुमेह (diabetes), मोटापा (obesity) जैसे स्थितियाँ एथेरोस्क्लेरोसिस या उच्च रक्तचाप के जोखिम-कारकों को बढ़ाती हैं, जो AAA के विकास में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, मोटापा और डायबिटीज से रक्त-नलियों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और धमनी की दीवार पर तनाव बढ़ जाता है।
इसलिए भविष्य में मोटापा कम करने वाली दवाओं (“obesity drug और weight loss injection”) जैसे कि लिराग्लुटाइड (liraglutide benefits) इत्यादि महत्वपुर्ण हो सकते हैं; हालांकि यह सीधे AAA के लिए प्रतिबंधित उपचार नहीं हैं।
वर्तमान में AAA-विशिष्ट “drug therapy” अल्प है; मुख्य उपचार नियंत्रण-कारकों का प्रबंधन (उच्च रक्तचाप, धूम्रपान) तथा बढ़े हुए व्यास के मामलों में जटिल vascular/surgical हस्तक्षेप है।
इसलिए “diabetes treatment”, “obesity drug”, “US launch” आदि की चर्चा AAA के सन्दर्भ में प्रत्यक्ष नहीं है, पर व्यापक हृदय-vascular स्वास्थ्य के रूप में इन्हें नहीं छोड़ा जा सकता।
AAA कैसे उत्पन्न होती है?
इस प्रश्न का उत्तर गहराई से देखें – जब धमनी दीवार की इलास्टिक क्षमता कम हो जाती है (उदाहरण के लिए धूम्रपान की वजह से), मसल सेल्स मर जाते हैं, मेट्रिक्स मैटलोप्रोटिऐसेज़ सक्रिय हो जाती हैं, दीवार पतली पड़ जाती है, और अंततः एक गुब्बारे-प्रकार की विकृति बन जाती है।
एक अध्ययन में कहा गया है कि इस प्रक्रिया में निम्न चरण प्रमुख हैं: (1) लीकोसाइटिक (श्वेत रक्त कण) इनफिल्ट्रेशन, (2) इलास्टिन-कोलेजन का विघटन, (3) स्मूद मसल सेल क्षय, तथा (4) नव-रक्त-नालियों का विकास।
यह विकृति धीरे-धीरे बढ़ती है, अक्सर बिना लक्षण के। जब व्यास एक निश्चित सीमा (उदाहरण > 5 सेंटीमीटर) से पार हो जाती है या बढ़ने की गति तीव्र हो जाती है, तो फटने (rupture) का जोखिम बहुत बढ़ जाता है।
कैसे निदान (Diagnosis) होता है और कब हस्तक्षेप (Intervention) जरूरी है?
निदान के लिए मुख्य रूप से अल्ट्रासाउंड, सीटी एंजियोग्राफी (CT angiography) इस्तेमाल होती है। अल्ट्रासाउंड सरल, सस्ता है और स्क्रीनिंग के लिए उपयुक्त है।
सीट एंगीओ अधिक विस्तृत जानकारी देती है कि धमनी की दीवार कितनी प्रभावित है, थ्रॉम्बस (उल्टे रक्त-जमाव) मौजूद है या नहीं, क्या वृद्धि-गति है, आदि।
हस्तक्षेप कब करें? आम नियम यह है कि यदि व्यास > 5–5.5 सेमी (कुछ केंद्रों में 5 सेमी) हो, या व्यास बढ़ने की गति > 0.5 सेमी/6 महीने हो, या रोगी में लक्षण हों, तो हस्तक्षेप का निर्णय लिया जाता है।
भारत-संदर्भ में यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि संसाधन-सीमित सेट-अप में “देखते-चलें” नीति पर निरंतर निगरानी आवश्यक है।
क्या कोई दवा (Drug) है जो AAA विशेष रूप से रोक सकती है?
वर्तमान में इस विषय में शोध जारी है लेकिन ऐसा कोई विशिष्ट “AAA रोकने वाली दवा” मानक रूप से स्वीकृत नहीं है। संशोधनात्मक चिकित्सा (medical therapy) में प्रमुख रूप से जोखिम-कारकों (धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल) को नियंत्रित करना शामिल है।
उदाहरण-स्वरूप, बीटा-ब्लॉकर (beta-blockers) का सुझाव कुछ अध्ययन में किया गया है, लेकिन यह विशुद्ध “दिल की वेसल की बढ़ती पोटली को रोकने” का दावा नहीं कर पाती है।
भविष्य में संभवतः जैव-चिकित्सा (biologic) या जीन-आधारित (gene-based) दवाओं के विकास की संभावना है, लेकिन अभी तक बड़ी-पैमाने पर क्लीनिकल ट्रायल्स और स्वीकृति नहीं मिली है।
क्या भारत में AAA पर ध्यान पर्याप्त है?
भारत में AAA की पहचान और प्रबंधन अभी भी सीमित है। स्वास्थ्य-संरचनाएं, जागरूकता एवं स्क्रीनिंग-घटनाएं बहुत व्यापक नहीं हैं। उदाहरण के लिए, एक अध्ययन में भारत में AAA का अनुमानित प्रचलन 0.4 % पाया गया, जो विश्व के अन्य हिस्सों से कम है। इसके चलते रोग अक्सर तब पकड़ा जाता है जब व्यास बढ़ चुका होता है या घटना-स्थिति (rupture) हो चुकी होती है। इसे सुधारने के लिए व्यापक स्क्रीनिंग नीति और केंद्र-विशिष्ट गाइड-लाइन विकसित करना आज भी जरूरी है।
विशेषज्ञों के विचार
वेस्कुलर सर्व्हिसेज हृदय-वेस्कुलर फाउंडेशन, दिल्ली के डॉ. रामेश कुमार कहते हैं —
“अधिकांश मामलों में AAA तब सामने आता है जब कोई अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन किसी दूसरी समस्या के सिलसिले में हुआ हो। इसलिए हमें जोखिम-ग्रस्त समूहों पर सक्रिय रूप से नजर रखना होगा, ताकि ‘सुनहरा मौका’ चूक न जाए।”
यह बात इस तथ्य को उजागर करती है कि जो “watch-and-wait” की नीति अपनाई जाती है, वह तब तक असर देखती है जब नियमित फॉलो-अप संभव हो।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस, भुवनेश्वर प्रो. सीता मिश्रा, शोधकर्ता (वेस्कुलर बायोलॉजी), का कहना है —
“धमनी की विकृति एवं उसके टूटने का जोखिम सिर्फ व्यास पर आधारित नहीं होता; वृद्धि-दर, धमनी दीवार की जैव-मूल स्थिति, थ्रॉम्बस का स्वरूप, रोगी की समग्र स्वास्थ्य-स्थिति भी मायने रखती है।”
यह विचार नवीन शोध की दिशा को दर्शाता है जिसमें सिर्फ व्यास मापने से काम नहीं चलता, बल्कि अधिक सूक्ष्म बायोमैकेनिकल माप-प्रणालियाँ भी विकासशील हैं।
भारत में चुनौतियाँ एवं प्रगतियाँ
स्क्रीनिंग एवं जागरूकता
भारत में AAA की व्यापक स्क्रीनिंग नहीं की जाती — अधिकांश स्वास्थ्य-प्रयोग अल्ट्रासाउंड के लिए अन्य कारण से होते हैं। इस वजह से “शांत विकास” पर ध्यान कम जाता है। पिछले कुछ वर्षों में कुछ प्रतिष्ठित केंद्रों ने AAA के लिए अल्ट्रासाउंड-स्कैनिंग अभियान शुरू किये हैं, लेकिन यह अभी भी बहुत सीमित है।
उदाहरण स्वरूप, एक केस रिपोर्ट में बताया गया है कि किसी मरीज में पेट में हल्के दर्द के कारण अल्ट्रासाउंड हुआ और AAA मिल गया; आगे वैस्कुलर टीम द्वारा सफ़ल स्टेंट-गैफ्टिंग भी हुई।
संसाधन-सीमित सेट-अप में उपचार
बहु-सांस्थानिक vascular-केंद्रों के अलावा छोटे शहरों एवं ग्रामीण इलाकों में AAA की पहचान एवं प्रबंधन मुश्किल है। खुले सर्जरी (open repair) या एंडोवैस्कुलर रिपेयर (EVAR) की व्यवस्था, योग्य सर्जन-टीम, फॉलो-अप एवं इमेजिंग सब उपलब्ध नहीं हो पाती। इन चुनौतियों के बीच भारत में कुछ प्रगतियाँ हुई हैं: बिरला अस्पताल, कोलकाता में एक दुर्लभ स्टेंट-गैफ्टिंग ऑपरेशन सफल हुआ जिसका समाचार भी प्रकाशित हुआ था।
भविष्य की दिशा
भारत में AAA के प्रबंधन हेतु नीचे-लिखित बिंदु-क्रियान्वयन ज़रूरी हैं–
जोखिम-ग्रस्त आबादी (पुरुष > 60, धूम्रपान करने वाले, उच्च रक्तचाप वाले) में नियमित अल्ट्रासाउंड-स्क्रिनिंग।
वेस्टर्न गाइड-लाइन के आधार पर भारत-अनुकूल रणनीति विकसित करना।
वेस्कुलर सर्जरी-सहायता नेटवर्क का विस्तार, खासकर प्राइवेट एवं पब्लिक-हॉस्पिटल्स में।
मरीजों एवं सामान्य जनता के बीच जागरूकता बढ़ाना कि AAA चुपचाप भी बढ़ सकती है।
अनुसंधान एवं क्लीनिकल ट्रायल्स को बढ़ावा देना ताकि भारत-विशिष्ट डेटा विकसित हो सके।
निष्कर्ष
Abdominal Aortic Aneurysm अर्थात् “पेट की धमनी की पोटली” एक गंभीर स्थिति है जो अक्सर बिना लक्षण के विकसित होती है, पर यदि फट जाए तो जीवन-हानि का जोखिम बहुत अधिक है। हालांकि डायबिटीज ट्रीटमेंट (“diabetes treatment”), मोटापा (“obesity drug”, “weight loss injection”, जैसे Liraglutide — ‘liraglutide benefits’) सीधे AAA के लिए नहीं बनी हैं, पर वे हृदय-वेस्कुलर स्वास्थ्य में सुधार लाने में मदद कर सकती हैं — जिससे AAA का जोखिम अप्रत्यक्ष रूप से कम हो सकता है।
भारत में AAA पर जागरूकता, स्क्रीनिंग एवं समय-समान हस्तक्षेप अभी भी एतिहासिक रूप से पिछड़े हैं, पर प्रयास बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि जोखिम-ग्रस्त व्यक्तियों को नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड करवाना चाहिए, धूम्रपान छोड़ना चाहिए, रक्तचाप तथा कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखना चाहिए।
आगे-चिन्तन के लिए यह सुझाव दिया जाता है कि भारत में AAA की व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टि से रणनीति तैयार हो — जिससे “चुप विकास” को पकड़ा जा सके और समय पर उपचार संभव हो सके। डॉक्टरों का कहना है:
“यदि AAA का व्यास अभी कम है और कोई लक्षण नहीं है, तब भी ‘watch-and-wait’ नीति अपनाई जा सकती है, लेकिन नियमित रूप से एक्स-रे/सीटी/अल्ट्रासाउंड तथा रोगी-निर्देशित फॉलो-अप होना अनिवार्य है।”
ऐसे में, यदि आप या आपके जान-पहचान में कोई व्यक्ति 60 साल से अधिक है, धूम्रपान करता है या उच्च रक्तचाप व कोलेस्ट्रॉल की समस्या है — तो AAA के लिए एक बार स्क्रीनिंग पर विचार करना बुद्धिमानी होगी।
संदर्भ
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Wanjari M.B., Mendhe D., Wankhede P. “Abdominal aortic aneurysm-A case report.” J Pharm Res Int. 2021;33(43A):265-269.
“Abdominal aortic aneurysms.” Nature Reviews Disease Primers. 2018;4:35.
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यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।
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