चुपचाप फैलती नई महामारी: क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ ने 800 मिलियन लोगों को जकड़ा — क्या यह आने वाले दशक की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन सकती है?

वैश्विक स्तर पर 800 मिलियन से अधिक लोग क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ से पीड़ित हैं। जानिए इसके कारण, प्रभाव, इलाज और रोकथाम की सच्चाई विस्तार से।

MEDICAL NEWS

ASHISH PRADHAN

11/8/20251 min read

Chronic Kidney Disease ने 800 मिलियन लोगों को जकड़ा
Chronic Kidney Disease ने 800 मिलियन लोगों को जकड़ा

परिचय: दुनिया की नई महामारी — जब गुर्दे चुपचाप देने लगें जवाब

एक हालिया वैश्विक अध्ययन ने चिकित्सा जगत को हिला कर रख दिया है। Global Burden of Disease (GBD) रिपोर्ट के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 788 मिलियन वयस्क अब क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) से प्रभावित हैं। यह संख्या वर्ष 1990 के लगभग 378 मिलियन मामलों की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है। यानी, बीते तीन दशकों में गुर्दा रोग ने उतनी ही तेज़ी से विस्तार किया है, जितनी तेज़ी से आधुनिक जीवनशैली ने हमारे भोजन और स्वास्थ्य के पैटर्न को बदल दिया है।

कब और क्यों हुआ यह बदलाव?

अध्ययन में यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि बढ़ती उम्र, मधुमेह (Diabetes), उच्च रक्तचाप (Hypertension), मोटापा (Obesity) और असंतुलित खानपान इस रोग के सबसे बड़े कारक बन गए हैं।


कहां प्रभाव सबसे ज्यादा?

एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में यह रोग अब तेजी से फैल रहा है, जबकि विकसित देशों में यह पहले से ही बुजुर्ग आबादी के लिए एक मौन खतरा बन चुका है।


कौन सबसे ज्यादा प्रभावित?

महिलाओं की तुलना में पुरुषों में इसका जोखिम अधिक पाया गया है, और 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में इसके गंभीर लक्षण तेजी से विकसित होते हैं।

चिरकालिक गुर्दा रोग क्या है और यह शरीर में कैसे असर डालता है?

चिरकालिक गुर्दा रोग यानी क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) एक ऐसी दीर्घकालिक स्थिति है जिसमें गुर्दे (Kidneys) धीरे-धीरे अपनी शुद्धिकरण (Filtration) क्षमता खो देते हैं।
गुर्दे शरीर में रक्त से अपशिष्ट पदार्थों और अतिरिक्त तरल को निकालने का काम करते हैं। जब यह प्रक्रिया बाधित होती है, तो शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा होने लगते हैं, जो आगे चलकर हृदय, मस्तिष्क और अन्य अंगों को प्रभावित करते हैं।

डॉक्टरों के अनुसार, शुरुआती चरणों में CKD के लक्षण बहुत हल्के होते हैं — थकान, भूख न लगना, पैरों में सूजन या पेशाब के पैटर्न में बदलाव जैसी समस्याएं। परंतु जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, मरीज को डायलिसिस (Dialysis) या गुर्दा प्रत्यारोपण (Kidney Transplant) जैसी महंगी और जटिल चिकित्सा प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।

क्या जीवनशैली और मधुमेह इसके सबसे बड़े अपराधी हैं?

दुनिया भर के CKD रोगियों में से लगभग 40% ऐसे हैं जिन्हें यह समस्या मधुमेह (Type 2 Diabetes) के कारण हुई।
एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में हर 11वां व्यक्ति मधुमेह से ग्रसित है, और उनमें से बड़ी संख्या धीरे-धीरे गुर्दे की विफलता की ओर बढ़ रही है। इसी प्रकार, मोटापा (Obesity) न केवल रक्तचाप बढ़ाता है बल्कि गुर्दे पर लगातार दबाव डालता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार, 1975 से अब तक मोटापे के मामलों में तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप, CKD की दर भी उसी अनुपात में बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि "जब शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध बढ़ता है और रक्त में शर्करा का स्तर लगातार ऊँचा रहता है, तो यह गुर्दे की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है।"

उपचार की चुनौती: जब दवाएं केवल राहत देती हैं, इलाज नहीं

CKD का कोई पूर्ण इलाज नहीं है — उपचार केवल प्रगति को धीमा करने और जटिलताओं को नियंत्रित करने तक सीमित है।
मरीजों को आमतौर पर रक्तचाप नियंत्रित करने वाली दवाएं (ACE inhibitors या ARBs), रक्त शर्करा घटाने वाली दवाएं (जैसे SGLT2 inhibitors) और विशेष आहार योजनाएं दी जाती हैं।

हाल के वर्षों में SGLT2 inhibitor class drugs जैसे Empagliflozin और Dapagliflozin ने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं।
इन दवाओं से न केवल रक्त शर्करा नियंत्रण बेहतर हुआ है बल्कि गुर्दे की विफलता के जोखिम में भी 30-40% तक की कमी देखी गई है।
फिर भी, इन दवाओं के कुछ दुष्प्रभाव हैं — जैसे मूत्र संक्रमण, निर्जलीकरण और कभी-कभी रक्तचाप का अत्यधिक गिरना।

AIIMS, दिल्ली के नेफ्रोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. राजेश खन्ना कहते हैं,

“हमने CKD के उपचार में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी रोगियों की जागरूकता और प्रारंभिक निदान सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत में लगभग आधे मरीज तब डॉक्टर के पास पहुंचते हैं जब उनका गुर्दा पहले से 70% तक क्षतिग्रस्त हो चुका होता है।”

क्या आधुनिक तकनीक और AI इस मौन हत्यारे को रोक पाएंगे?

हाल के वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) और मशीन लर्निंग (Machine Learning) तकनीकों ने चिकित्सा अनुसंधान में नई संभावनाएं खोली हैं।
AI आधारित उपकरण अब गुर्दे की कार्यक्षमता के पैटर्न का विश्लेषण करके प्रारंभिक चरणों में रोग की भविष्यवाणी करने में सक्षम हो रहे हैं।
अमेरिका और जापान में कई कंपनियां अब ऐसे wearable devices विकसित कर रही हैं जो पेशाब के रासायनिक घटकों को पढ़कर रियल-टाइम किडनी हेल्थ स्कोर प्रदान करते हैं।

MIT की प्रोफेसर डॉ. एलिजाबेथ वेनर के अनुसार,

“अगर हम अगले पांच वर्षों में AI-सक्षम डायग्नोस्टिक नेटवर्क स्थापित कर पाते हैं, तो CKD की पहचान उसके शुरुआती चरण में संभव हो जाएगी। इससे हर साल लाखों मरीजों की जान बचाई जा सकती है।”

भारत में स्थिति: बढ़ती आबादी, सीमित संसाधन

भारत में CKD की समस्या तेजी से बढ़ रही है। इंडियन जर्नल ऑफ नेफ्रोलॉजी के अनुसार,

  • देश में हर वर्ष लगभग 2.2 लाख नए डायलिसिस मरीज दर्ज किए जाते हैं।

  • लेकिन सिर्फ 10% मरीजों को नियमित डायलिसिस मिल पाती है, बाकी वित्तीय कारणों या जागरूकता की कमी के चलते उपचार से वंचित रहते हैं।

सरकारी योजनाएं जैसे ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय डायलिसिस कार्यक्रम’ ने कुछ राहत ज़रूर दी है, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी बुनियादी सुविधाएं और नेफ्रोलॉजिस्ट की कमी गंभीर चुनौती बनी हुई है। इसी बीच निजी अस्पतालों में डायलिसिस की लागत औसतन ₹2500 से ₹4000 प्रति सत्र के बीच है, जिससे गरीब मरीजों के लिए यह दीर्घकालिक बोझ बन जाता है।

भविष्य की दिशा: रोकथाम ही सबसे बड़ा इलाज

विशेषज्ञों का मत है कि CKD से लड़ाई का सबसे कारगर तरीका रोकथाम और जागरूकता है।
अगर किसी व्यक्ति को पहले से मधुमेह या उच्च रक्तचाप है, तो उसे हर छह महीने में गुर्दे की जांच (Creatinine और GFR टेस्ट) करवानी चाहिए।


साथ ही कम नमक, उच्च फाइबर वाला आहार, पर्याप्त पानी का सेवन, और दवाओं का चिकित्सकीय परामर्श के बिना प्रयोग न करना आवश्यक है।

डॉ. आर. बालकृष्णन, चेन्नई स्थित अपोलो हॉस्पिटल्स के प्रमुख नेफ्रोलॉजिस्ट, कहते हैं—

“हमारा लक्ष्य केवल इलाज नहीं, बल्कि लोगों को वह ज्ञान देना है जिससे वे इस रोग से दूर रह सकें। भारत में CKD को रोकने के लिए हमें वैसा ही जनजागरूकता अभियान चलाना होगा जैसा हमने पोलियो या टीबी के खिलाफ चलाया था।”

वैश्विक दृष्टिकोण और भविष्य की उम्मीदें

वैज्ञानिक अब gene therapy और stem cell research के माध्यम से गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में काम कर रहे हैं।
अमेरिका, जर्मनी और जापान में इस क्षेत्र की शुरुआती क्लिनिकल ट्रायल्स में कुछ उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं।
हालांकि, इन तकनीकों को आम मरीजों तक पहुंचने में अभी वर्षों लगेंगे।

फिलहाल सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग और निवेश — जैसे कि हाल ही में घोषित “Global Kidney Initiative 2030” — आने वाले दशक में इस रोग के खिलाफ सामूहिक प्रयास को गति देंगे।

निष्कर्ष: एक धीमी लेकिन गंभीर महामारी

CKD एक ऐसी मूक महामारी बन चुकी है जो न दर्द देती है, न जल्दी दिखती है, लेकिन धीरे-धीरे जीवन की गुणवत्ता को समाप्त कर देती है।
यदि अभी से जागरूकता, नियमित जांच और संतुलित जीवनशैली अपनाई जाए, तो करोड़ों लोगों को भविष्य में डायलिसिस या ट्रांसप्लांट जैसी जटिलताओं से बचाया जा सकता है।

भविष्य की दिशा स्पष्ट है:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर CKD स्क्रीनिंग अनिवार्य की जाए।

  • राष्ट्रीय स्तर पर डेटा कलेक्शन और रजिस्ट्री बनाई जाए।

  • और सबसे महत्वपूर्ण, लोगों को बताया जाए कि गुर्दे केवल शुद्धिकरण का अंग नहीं, बल्कि जीवन की रीढ़ हैं।

स्रोत (References):
  1. Global Burden of Disease Study 2023, Institute for Health Metrics and Evaluation (IHME)

  2. World Health Organization (WHO) – Global Health Estimates 2024

  3. Indian Journal of Nephrology, Volume 34, Issue 6 (2024)

  4. Expert Interviews: Dr. Rajesh Khanna (AIIMS), Dr. R. Balakrishnan (Apollo Hospitals, Chennai)

  5. News-Medical.net (Published November 2025)

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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