नासल वैक्सीन: क्या अब इंजेक्शन का दौर खत्म होने वाला है?

नासल वैक्सीन अब टीकाकरण की दुनिया में नई क्रांति लाने जा रही है। यह सुई रहित वैक्सीन सीधे नाक के माध्यम से दी जाती है और संक्रमण को उसके शुरुआती बिंदु पर ही रोकती है। भारत में Bharat Biotech की iNCOVACC और विश्वभर के कई शोध इसे भविष्य का समाधान बता रहे हैं। क्या यह तकनीक इंजेक्शन को पूरी तरह इतिहास बना देगी? जानिए इसके फायदे, चुनौतियाँ और आने वाला वैक्सीन भविष्य।

PHARMA NEWS

ASHISH PRADHAN

11/10/20251 min read

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परिचय

दुनियाभर में वैक्सीन अनुसंधान अब एक नए मोड़ पर है। वैज्ञानिक अब ऐसी वैक्सीन विकसित कर रहे हैं जो सुई के बिना, यानी नाक के माध्यम से दी जा सके। इस नासल वैक्सीन का विचार महामारी के दौरान और तेज़ हुआ, जब लोगों ने इंजेक्शन के दर्द, संक्रमण और डर से बचने के तरीकों पर ध्यान दिया। अब सवाल यह है — क्या यह तकनीक पारंपरिक इंजेक्शन को पीछे छोड़ देगी?

नासल वैक्सीन क्या है और कैसे काम करती है?

नासल वैक्सीन (intranasal vaccine) एक स्प्रे या ड्रॉप के रूप में नाक के अंदर दी जाती है। यह सीधे श्लेष्मा झिल्ली (mucosal membrane) पर काम करती है, जहाँ से अधिकांश श्वसन रोग जैसे COVID-19, फ्लू या RSV शरीर में प्रवेश करते हैं। नाक के अंदर वैक्सीन पहुँचने पर वहाँ IgA नामक एंटीबॉडी बनती है, जो शुरुआती स्तर पर ही वायरस से लड़ने की क्षमता देती है। इसके अलावा शरीर की सामान्य प्रतिरक्षा (systemic immunity) भी सक्रिय होती है।

फायदे क्या हैं?

नासल वैक्सीन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसमें सुई की आवश्यकता नहीं होती। इससे न केवल इंजेक्शन का डर खत्म होता है, बल्कि प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी और स्टरलाइज़्ड उपकरणों की जरूरत भी कम हो जाती है। यानी ग्रामीण या दूरदराज़ इलाकों में भी टीकाकरण आसान हो सकता है। इसके अलावा, नासल वैक्सीन संक्रमण और उसके फैलाव दोनों को रोकने में अधिक प्रभावी हो सकती है, क्योंकि यह प्रतिरक्षा को प्रवेश-बिंदु (entry point) पर ही सक्रिय करती है।

भारत और दुनिया में प्रगति

भारत की Bharat Biotech कंपनी ने iNCOVACC नामक नासल COVID-19 वैक्सीन तैयार की, जिसे 2023 में आपातकालीन उपयोग की अनुमति मिली। कई देशों में भी इसी तरह की वैक्सीन पर शोध चल रहा है — जैसे Yale University और Oxford University के वैज्ञानिकों ने पाया कि नासल वैक्सीन इंजेक्शन की तुलना में बेहतर श्लेष्मा प्रतिरक्षा देती है। यानी यह न केवल बीमारी से बचाव करती है बल्कि संक्रमण फैलने से भी रोक सकती है।

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चुनौतियाँ क्या हैं?

हालाँकि संभावनाएँ बहुत हैं, पर नासल वैक्सीन के सामने तकनीकी कठिनाइयाँ भी हैं। नाक में दवा को सही मात्रा में पहुँचाना, उसे स्थिर रखना और उसकी लंबी अवधि की सुरक्षा सुनिश्चित करना आसान नहीं है। कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि नासल मार्ग से दी गई दवा तंत्रिका प्रणाली तक पहुँच सकती है, जिससे दुर्लभ साइड-इफेक्ट हो सकते हैं। इसके अलावा, अब तक क्लीनिकल ट्रायल सीमित रहे हैं और हर रोग के लिए नासल वैक्सीन प्रभावी साबित नहीं हुई है।

भविष्य की दिशा

विशेषज्ञों का मानना है कि नासल वैक्सीन भविष्य में टीकाकरण की तस्वीर बदल सकती है। हालाँकि यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह इंजेक्शन को पूरी तरह इतिहास बना देगी, पर इतना तय है कि यह एक बड़ा विकल्प बन रही है। भारत जैसे विशाल देश में जहाँ नीडल-फोबिया, लॉजिस्टिक चुनौतियाँ और स्वास्थ्य संसाधनों की कमी बड़ी समस्या हैं, वहाँ नासल वैक्सीन एक व्यावहारिक समाधान बन सकती है। भविष्य में अगर तकनीक, सुरक्षा और प्रभावशीलता पर भरोसा बढ़ा, तो “नो-नीडल वैक्सीन” अगली वैक्सीन-क्रांति साबित हो सकती है।

निष्कर्ष:


नासल वैक्सीन फिलहाल इंजेक्शनों को पूरी तरह नहीं बदल सकीं हैं, लेकिन उन्होंने चिकित्सा जगत में नई उम्मीद जगाई है। अगर आने वाले वर्षों में ये तकनीक सुरक्षित, प्रभावी और सस्ती सिद्ध होती है, तो टीकाकरण का चेहरा हमेशा के लिए बदल सकता है — और शायद एक दिन, इंजेक्शन सिर्फ इतिहास की किताबों में रह जाए।

Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। इसमें दी गई जानकारी किसी भी प्रकार की चिकित्सीय सलाह (Medical Advice) नहीं है। किसी भी चिकित्सा निर्णय के लिए हमेशा अपने डॉक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करें।

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